जहाँ बसाते चलें

कुछ पाना हमारा मकसद न हो
देने की लत खुद को लगाते चलें
जीवन हमारा यह रहे न रहे
दूसरों का जहाँ चलो बसाते चले ।
हमने देखा दुनिया की भीड़ में भी हम अकेले है
क्यूँ न अकेले ही आशियाना बसाने चले ।
बहुत सह लिया अपनो से सितम
फिर क्यू उनके नाम का दीप जलाते रहे ।
मेरी भावनाओं की जिन्हें कद्र ही नहीं
क्यूँ उनकी बेरूखी पे आँसू बहाते रहे ।
जिन्हे आँसूओ की कद्र ही नहीं
क्यूँ उनके खातिर खुद को जलाते रहे।
कयी ऐसे है जिनकी उम्मीदें हैं हमसे जुङे
क्यू न उनके लिए ही खुद को फिर से बनाते चलें ।
जीवन का मकसद बदले में पाना नहीं
बिना पाये ही परहित में खुद को लुटाते चले ।
ज्यादा नहीं, पर कुछ के लिए बहुत कर सकते है हम
चलो दूसरों की खुशी को अपना मकसद बनाते चले।

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