दोस्त
यह शहर अनजान सा लगने लगा है
तू नहीं तोह बेगाना सा लगने लगा है
वह चाय की टपरी वह गालिया आज भी भरे है
तू नहीं तोह सब कुछ बेजान सा लगने लगा है
लोग तोह बहुत मिले तेरे जैसा दोस्त कहा है
मेरे गम मे किसी से भी लड़ने का जस्बा कौन रखता है
बिन बोले सब कुछ तू जान जाता है
अरे पेग बनाने से सब कुछ तुझी ने तोह सिखाया है
दोस्त ना हो तोह किस बात की ज़िन्दगी
होश गुम ना हो जाए तोह किस बात की तिशनगी
आज तक इस शहर मे कोई नहीं था अपना
अब तुम सब से ही तोह बनता है परिवार अपना
सुन्दर
ध्न्यावाद
बहुत सुन्दर, वाह
धन्यवाद
Sunder
धन्यवाद
सुंदर रचना
धन्यवाद
सुन्दर अभिव्यक्ति
धन्यवाद
Nice
Thanks