जैसी करनी वैसी भरनी

एक बहू अपनी सास को हमेशा भला बुरा कहा करती थी। सास चुपचाप रह जाती थी। क्योंकि उसका पति नहीं था। एक बेटा भी था तो वह बीवी के गुलाम बन कर ऐश की ज़िन्दगी गुजार रहा था। समय के पहिया यों ही घूमता गया। सास बेचारी पानी पानी कह कर मर गयी। मगर बहू ने पानी तक नहीं दिया। बहू व बेटे दोनों मिल कर खूब दानपुन किया। ताकि माँ की आत्मा को शांति मिल सके। और उसे किसी भी काम में बरकत हो। मगर ऐसा नहीं हुआ। दिनोदिन कर्ज के तले में दोनों दबते चले गए। घर में अशांति का माहौल छा गया। वह अपने पति को बाहर भेज दिया । ताकि कर्ज से छुटकारा मिल सके। मगर इसका परिणाम कुछ उल्टा ही हुआ। उसका पति शहर जा कर शराब व शबाब में ऐसा डूबा कि वो हमेशा के लिए उसका साथ छोड़ दिया। वह अभागन बहू इस संसार में आज भी दुख के दलदल में दबी हुई है। उसे सहारा देने वाला कोई नहीं है। औलाद तो सात थे। मगर सब अपने अपने ससुराल में है। कोई औलाद उसे देखने तक नहीं आते। जबकि आज भी वह औरत हर साल गंगा नहा रही है। उसे क्या पता कि जब घर में गंगा थी तो उसने कभी सच्चे मन से उसमें डुबकी लगाई ही नहीं। उस औरत को आज एहसास हो रहा है कि मैने अपनी सास को कभी सासु माँ समझी ही नहीं ।वह आज भी अपनी औलाद से सुख पाने की उम्मीद लगाए बैठी है।

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