तुझे क्यों दर्द होता है, जरा सा आह से मेरी
तुझे क्यों दर्द होता है, जरा सा आह से मेरी
मुहब्बत गर नहीं है तो बता क्या बात है तेरी।
बता पाये न मुँह से तो, इशारों में ही समझा दे
मदद लेकर तू औरों की, मुझे संदेश पहुंचा दे।
समझ मन यह नहीं पाता कि चाहत है या यूं ही है
मगर जो नेह दिखता है, बता क्या बात है तेरी।
नहीं दीदार होने पर मचल जाता है क्यों यह दिल
कभी तेरा कभी मेरा बता क्या बात है तेरी।
तुझे क्यों दर्द होता है, जरा सा आह से मेरी
मुहब्बत गर नहीं है तो बता क्या बात है तेरी।
अति सुन्दर
सादर धन्यवाद
Beautiful
Thank you जी
बहुत खूब
सादर धन्यवाद जी
ग
Thanks
अति खूबसूरत काव्य है सतीश जी । काव्य के लय बद्ध शैली की तारीफ़ के लिए शब्दकोष कम पड़ता प्रतीत हो रहा है। “मगर जो नेह दिखता है बता क्या बात है तेरी”….पंक्तियों ने दिल को छू लिया। आपके उच्च स्तरीय लेखन को प्रणाम..।
आपने समीक्षा में इतना सुंदर लिखा है। प्रेरित करती हुई इन पंक्तियों के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद और अभिवादन है गीता जी
वाह क्या बात है
Thank you
बहुत ही बढ़िया
बहुत धन्यवाद
दिल को स्पर्श करती है आपकी रचना।
आपको बहुत बहुत धन्यवाद अमित जी