दास्तां -ए- सैनिक
एक सैनिक की यही दास्तां है
वैसे तो सदा वह गुमनाम होता है
हो जाए शहीद बस तभी नाम होता है
देश की रक्षा कर चिर ख़ामोशी में सो जाता है
फिर कौन याद करता है ? किसे याद आता है ?
है एक सवाल ! जो उसे भी याद आता होगा
शहादत के समय मन में कौंध जाता होगा ,
बुढ़ापे की लाठी बनने का धर्म भी तो निभाना था
रहेगा ताउम्र किसी की मांग में सिंदूर ये भरोसा भी दिलाना था
इसी उधेड़बुन में उसे फिर कुछ याद आता होगा
देश है सर्वोपरि यह सोच जाता होगा ।।
और फिर लड़ते-लड़ते चिर निद्रा में सो जाता होगा।
ऐ मेरे देश ! सैनिकों को कुछ तो मान दो
उनकी हिम्मत और जज्बे को थोड़ा सम्मान दो
माना कि रक्षक वह है पर थोड़ा कर्तव्य उठा लो तुम
उनके परिवार के खातिर थोड़ी वफादारी निभा लो तुम
आतंकवाद का सफाया कर उनकी भी जान बचाना है
है अनमोल उनकी भी जान ये विश्वास उन्हें दिलाना है
सैनिक केवल एक जान नहीं अपने परिवार की जान हैं
देश सहित ना जाने कितनी उम्मीदों का पैगाम है।
Kanchan dwivedi
Nyc
Thanks
Nice
Thanks
पंक्तियां तारीफ़ ए केबिल है।
शुक्रिया
वाह बहुत सुंदर
Thank you
Nice 👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏👏
Thanks dear
Sundar
Thanks
Good
Thanks