Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
अर्थ जगत का सार नही, प्रेम जगत का सार है ।
अर्थ जगत का सार नही, प्रेम जगत का सार है । प्रेम से ही टिकी हुई, धरती, गगन, भुवन है ।। अर्थ जगत का सार…
लॉक डाउन २.०
लॉक डाउन २.० चौदह अप्रैल दो हज़ार बीस, माननीय प्रधान मंत्री जी की स्पीच । देश के नाम संबोधन, पहुंचा हर जन तक । कई…
देश दुर्दशा वर्णन ।।
निज राष्ट्र की दुर्दशा अब कोई क्यूँ कहता नहीं? भारतेन्दु हरिश्चन्द्रजी कह गये भारत दुर्दशा, अब कोई कवि महाराज जी ऐसी कविता क्यूँ लिखते नहीं?…
जंगे आज़ादी (आजादी की ७०वी वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर राष्ट्र को समर्पित)
वर्ष सैकड़ों बीत गये, आज़ादी हमको मिली नहीं लाखों शहीद कुर्बान हुए, आज़ादी हमको मिली नहीं भारत जननी स्वर्ण भूमि पर, बर्बर अत्याचार हुये माता…
अति सुंदर
आपने समृद्ध भाषा का प्रयोग करते हुए
सागरमंथन से प्रकट हुए धंवन्तरि वैद्य जी के दर्शन अपनी कविता में कराये हैं
एवं कुबेर जी जो धन धान्य के कुलपति हैं की कृपा बनाए रखने की बात कही है जो श्रेयस्कर है
बहुत बहुत धन्यवादआपको इतनी सुंदर समीक्षा के लिए
अति सुन्दर रचना है भाई जी, आरोग्य के देवता धनवंतरी जी अमृत कलश ले कर प्रकट हुए थे समुंद्र मंथन में और धन के देवता कुबेर जी का भी आह्वान है ।
शुक्रिया बहिन
Beautiful
धन्यवाद