*नज़्म कोई मोहब्बत की*
सुना दो आज मुझको तुम,
नज़्म कोई मोहब्बत की।
हो जिसमें बस बात,
कुछ तेरी कुछ मेरी।
छोड़कर सब दुख दर्द दुनियां के,
चलो, वक्त कुछ साथ बिताते हैं।
कह दो आप कुछ अपनी,
कुछ हम अपनी सुनाते हैं।
मौसम भी सुहाना है
सुहानी साँझ आई है,
चलो पूछें साँझ से आज,
क्या सौगात लाई है।।
______✍️गीता
बहुत खूब लिखा
बहुत-बहुत धन्यवाद सर
बहुत ही खूबसूरत रूमानी कविता मन कहीं खो गया
धन्यवाद प्रज्ञा
सुना दो आज मुझको तुम,
नज़्म कोई मोहब्बत की।
हो जिसमें बस बात,
कुछ तेरी कुछ मेरी।
——– वाह, बहुत ही सुंदर रचना, व्यस्ततावश देख नहीं पाया था, बहुत ही लाजवाब रचना है।
सुन्दर और उत्साह वर्धक समीक्षा के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सतीश जी, हार्दिक आभार