निशा की है शान निराली
नभ में तारे चमक रहे हैं,
चन्द्रमा भी दमक रहे हैं।
निशा की है शान निराली,
सुबह के गए घर लौट रहे हैं।
पंछी भी वापस नीड में आए,
निशा की गोद में चैन पाएं।
दिन भर की थकन से चूर जनों को,
निशा अपने आलिंगन में सुलाए।
निशा में नभ की छटा निराली,
निहार मुग्ध हो रही मैं तो आली।
अनगिन तारे देख आभास हो रहा,
मानो नभ मना रहा दीवाली॥
_____✍गीता
कवि गीता जी की यह कविता बहुत सुंदर शब्द चित्र का सृजन किये हुए है। कविता की भावप्रवणता लाजवाब है। वर्णनात्मक शिल्प से कविता की खूबसूरती में चार चांद लगे हैं।
इस उच्च स्तरीय समीक्षा हेतु आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सतीश जी हार्दिक आभार सर
बहुत बढ़िया रचना
बहुत-बहुत धन्यवाद सर
अनगिन तारे देख आभास हो रहा,
मानो नभ मना रहा दीवाली॥
धन्यवाद जय राम जी की
Nice poem,
Thanks for your nice compliment Chandra ji
very nice words. . .
Thank you very much sir
बहुत खूब