निस्सहाय की सहायता करूं…
हे प्रभु इतना दे मुझे,
ना फैलें किसी के आगे हाथ
देने को आतुर रहें
हर मानव का साथ,
हर मानव का साथ मैं दूं
आगे बढ़-चढ़कर
निस्सहाय की सहायता करूं
मैं हँस हँस कर
जो मांगे मेरी रोटी तो
दे दूँ थाली
भले ही मेरा पेट रहे बिल्कुल खाली।।
सुंदर भाव
Thanks dear
कविता के संग चित्र की मिलाप बहुत ही सुन्दर है। अति उत्तम भाव प्रकट किया है आपने।
इतनी सुन्दर समीक्षा की है आपने
कि मन प्रफुल्लित हो गया है
अतिसुंदर भाव
धन्यवाद