न जुदाई का भय हो
ठीक कहा तुमने
पायें यदि मानव तन
अगले जनम में,
या बनें, कीट, पतंग,
जंगली जानवर,
अपनों के बीच
अपने हो सकने वालों
के बीच ही जनम पायें।
न जुदाई का भय हो
न दूर चले जाने का गम
न परम्परा की बंदिशें हों
न रूढ़ि की रूढ़िवादिता हो।
बस एक हो पाने में
सरलता ही सरलता हो।
सुन्दर भाव
सादर धन्यवाद जी
क्या बात है कवि ने तो अगले जनम तक की कल्पना कर ली🤔
सुन्दर प्रस्तुति ..
बहुत बहुत धन्यवाद, गीता जी, सादर अभिवादन
वाह वाह, बहुत ही गजब
धन्यवाद जी
बहुत खूब
बहुत धन्यवाद
अतिसुंदर
सादर नमस्कार, धन्यवाद
ओफ्फो…
इतना आगे का सोंच लिया
सादर आभार
गजब की पंक्तियाँ
बहुत धन्यवाद जी
बढ़िया, very nice
धन्यवाद जी