पत्थर की आंख
तंग आ चुके दुनियां के ताने से,
उस बेचारे काने ने
पत्थर की आंख लगवाली,
नज़र तो फ़िर भी नहीं आया
मगर दुनियां की नज़र बदल डाली ।।
*****✍️गीता
तंग आ चुके दुनियां के ताने से,
उस बेचारे काने ने
पत्थर की आंख लगवाली,
नज़र तो फ़िर भी नहीं आया
मगर दुनियां की नज़र बदल डाली ।।
*****✍️गीता
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वाह बहुत खूब
बहुत बहुत धन्यवाद आपका भाई जी 🙏
बहुत खूब वाह वाह
सादर आभार सर बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
बहुत ही सुंदर लिखा है waah waah
Thanks for your valuable compliment Piyush ji.
बहुत ही सुंदर
बहुत बहुत धन्यवाद आपका अनुपम जी
शारिरिक अक्षमता मनुष्य के मन में निराशा के भाव पैदा करती है। उस पर लोगों द्वारा दिये जाने वाले ताने उसके मन में हीन भावना पैदा करते हैं। वह अपना तो किसी तरह जी जाए, लेकिन दुनिया उसे जीने नहीं देती, क्योंकि दुनिया को दिखावट ज्यादा पसंद होती है। ऐसे में आम जीवन की कवि गीता जी ने सरल शब्दों का प्रयोग कर अभिधागत व्यंजना में बहुत ही प्रखर तरीके से भाव को प्रकट किया है।
कविता के भाव को इतने विद्वत तरीके से समझाने और समझने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद सतीश जी ।समीक्षा के लिए
आपका शुक्रिया सर 🙏
बहुत खूब
बहुत बहुत शुक्रिया आपका चंद्रा जी 🙏