बनूँ मैं जानकी तेरी..!!

तू मेरी नज्म़ बन जाए
मैं तेरी नज्म़ बन जाऊं
तू मेरा राग बन जाए मैं
तेरा राग बन जाऊं
कुछ इस तरह जुड़ जाएं
अलग ना कर सके कोई
तू मेरी रूह बन जाए
मैं तेरी रूह बन जाऊं
ना शबरी हूँ ना अहिल्या हूँ
ना शूर्पनखा-सी हूँ कामुक
बनूँ मैं जानकी तेरी
तू मेरा राम हो जाए…!!

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Responses

  1. बनूं मैं जानकी तेरी
    तू मेरा राम हो जाए।…
    बहुत ही उच्च स्तरीय लेखन है आपका। सदैव यूं ही आगे बढ़ती रहें। इस लेखन को सैल्यूट।

      1. उम्र में मुझसे छोटी हो आशीष तो दूंगी ही।
        बस, दुआ करो कि ये दुआ कुबूल हो जाए..

  2. पाठक के मानस पटल पर सीधे तौर पर अंकित हो सकने में सक्षम इस कविता में प्यार है, मनुहार है। और एक आदर्श स्थिति की स्थापना की गई है। कवि की जबरदस्त साहित्यिक क्षमता को प्रकट करती सुन्दर कविता है।

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