बेरोजगारी

आईने तू इस तरह से
मत दिखा तो शक्ल मेरी
इन दिनों यौवन में हूँ
चिंताएं मेरी लाजमी हैं।
सोचता था मैं, कड़ी
मेहनत से तारे तोड़ लाऊं।
लेकिन यहां तो सारे पथ
हैं बन्द कैसे लक्ष्य पाऊं।
हर तरफ छाया अंधेरा
कल की चिंताओं ने घेरा,
घेर कर बेरोजगारी
तोड़ती उत्साह मेरा।
अब बता तू ही कि कैसे,
मैं चमक जीवित रखूं
कुछ नहीं कर पा रहा हूं,
किस तरह आगे बढूं।

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Responses

  1. एक तो कोरोना की महामारी, उपर से बेरोज़गारी , कैसे कोई ख़ुश रहे
    देश दुनिया पे जैसे आफत सी आ गई है ।बेरोज़गारी युवा वर्ग की चिंता का विषय बना हुआ है ।
    बेरोज़गारी की समस्या पर प्रकाश डालती हुई बहुत शानदार रचना ।

    1. आपकी लेखनी से निकली समीक्षा उत्साहवर्धक है। भाव को समझने व विश्लेषण करने हेतु सादर अभिवादन।

  2. आपकी रचना समकालीन यथार्थ पर आधारित है ।
    जो हो रहा उस हुबहू शब्दों के माध्यम से वयक्तकिया है ।
    सराहनीय

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