बेहाल मजदूर
आया ‘कोरोना वायरस’ सबसे
ज्यादा हम बेहाल हुये।
सच कहता हूँ हम
मजदूरों के बहुत ही बुरे हाल हुये।
छूटा रोजगार तो,
दाल रोटी के लाले हो गये।
मकान मालिक भी किराये के,
तलाशी हो गये।
हम मजदूर,मजबूर,
बेबस व लाचार बन गये।
उठा झोला परिवार संग,
घर की ओर चल दिये।
न ट्रेन,न ही मोटरकार,
और न ही कोई बस मिली।
पैदल ही चले क्योंकि न,
कोई और आशा दिखी।
हम गिरे,गिरकर फिर उठे,
चल दिये,चलते गये।
खुद रोये,खुद चुप हो गये,
आगे बढ़े,बढ़ते गये।
भूख,प्यास से हम जूझते गये
फिर भी आगे बढ़ते गये।
पैरों के छालों की ना फ़िक्र की,
हम आगे चलते गये।
जो आयी विपदा उसके
हम गरीब न जिम्मेदार है।
जो रईस आये विदेश से
वही असली कर्णधार है।
तुम ‘एअरपोर्ट’ पर अच्छे से,
उनकी जाँच करते।
होते लक्षण तो उन्हे वही,
क्वारेंनटाईन करते।
न फैलता वायरस और हम सब,
सुरक्षित बच जाते।
चन्द रईसों के चक्कर मे यूँ,
न हम दर-दर की ठोकर खाते।
करनी इनकी थी बदनामी पर बदनाम,
हम गरीब मजदूर हो गये।
इन पासपोर्ट्स के चक्कर में,
राशनकार्ड के चिथड़े उड़ गये।”
Great lines!!👌👌👏👏
🙏🙏
वाह सटीक चित्रण
धन्यवाद आपका
👏👏👌👌
वेलकम
बहुत सुंदर
👍
Nice
वेलकम थैंक्स
मजदूर,मजबूर
न ट्रेन,न ही
गिरे,गिरकर
उपरोक्त सभी शब्दों में अर्धविराम के बाद 1 स्पेस आना चाहिए l
जैसे- मजदूर, मजबूर
क्वारेंनटाईन- क्वॉरेंटाइन
आयी- आई
गये- गए
हुये- हुए
यह कुछ अशुद्धि है जिनका सुधार कर लेना चाहिएl
मेरा तात्पर्य किसी को ठेस पहुंचाना बिल्कुल नहीं है
मैं सिर्फ इतना बताना चाहती हूं एक कविता में भाव दिए जाते हैं
कवि का मूल उद्देश्य उस तक उनके भाव पहुंचाना है
आपकी कविता बहुत अच्छी है मुझे भी बहुत पसंद आई
परंतु यदि यहां इस प्लेटफार्म पर कविता में अतिथियों को ज्यादा जाता है तो माफ कीजिएगा शायद यह मेरे लिए नहीं बना है
आप सभी इस का आनंद लीजिए
अपनी कविता में रेलगाड़ी को रेल गाड़ी लिखा है आपने
थैंक्स
वाह
👍वेलकम
Nice
थैंक्स फॉर कमेंट्स
बहुत सुंदर भाव
थैंक्स फॉर कमेंट्स