मय की तलब
जो तू सीने से लगा ले ।
मय की तलब भूला दे ।
खुमारी कम नहीं मय से,
लबों से जाम पिला दे ।
यूँ तो पीता नहीं लेकिन,
नशा तेरा जहाँ भूला दे ।
ये लत मेरी ना छूटे कभी,
बेसुध तू मुझको डूबा दे ।
नश्तर सी ख़लिश दिल में,
जुदाई तेरी मुझको रुला दे ।
देवेश साखरे ‘देव’
Bahut khub
शुक्रिया
Good
Thanks
Khub
शुक्रिया
Kya baat h
धन्यवाद
Nice
Thanks
वाह बहुत सुंदर रचना
आभार आपका
Ayehaye
Thanks