Categories: शेर-ओ-शायरी
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जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
मां तूं दुनिया मेरी
हरदम शिकायत तूं मुझे माना करती कहां निमकी-खोरमा छिपा के रखती कहां भाई से ही स्नेह मन में तेरे यहां रह के भी तूं रहती…
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रात तूं कहां रह जाती
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ज्यादा नहीं मुझे तो बस………..
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वाह क्या बात है, वाह
, धन्यवाद सर 🙏
सुन्दर भाव
धन्यवाद जी ,🙏सुप्रभात
NICE
Thank you
वाह
धन्यवाद जी
True Lines
Thank you
सच्चाई से परिपूर्ण सुंदर रचना
बहुत बहुत धन्यवाद मैडम जी
बहुत ही सुंदर, बहुत ही लाजबाब
🙏🙏
दशरथ के तरकस से
यह शब्दबेदी बाण हो लाए|
जो शब्द सुन कर तीर चलाए
वह दशरथ की कला हो लाए|
कवियों की पहचान यही है,
मर जाएं बीन सत्य कहे ना रह पाए||
✍✍✍✍👌👌👌👌👌👌
वाह, क्या बात है, वाह
बहुत सुंदर ऋषि जी
मेरी रचना “चश्में वाले नेता जी” उसको आज प्रकाशित करूंगा
सच को अपने विचारो में प्रकट करने की कोशिश की है उसमें भी।🙏🙏
Yessssssss
वाह,वाह
🙏🙏
Nice
बात में दम है
🙏🙏🙏
🙏🙏
बहुत खूब