मैं फिर भी तुमको चाहूंगी (साहित्य को समर्पित)
मिथ्याओं पर आधारित
है साहब ! सोंच तुम्हारी
अब तो सारी बातें हैं
लगती झूँठ तुम्हारी
मेरी अभिलाषा का
है तुमने जो उपहास किया
मेरी करुण व्यथा का
है तुमने जो अपमान किया
ना कभी माफ कर पाऊँगी
ना हिय से उसे भुलाऊंगी
ऐ साहित्य ! तुझे मेरा प्रणाम
मैं फिर भी तुमको चाहूंगी।।
मेरी करुण व्यथा का
है तुमने जो अपमान किया
ना कभी माफ कर पाऊँगी
ना हिय से उसे भुलाऊंगी
__________ कभी प्रज्ञा जी की भावुक रचना, उत्तम अभिव्यक्ति
धन्यवाद
अतिसुंदर रचना
धन्यवाद
बहुत सुंदर भाव
धन्यवाद
सगीतमय तथा लयबद्ध प्रस्तुति
धन्यवाद
अति सुन्दर रचना
धन्यवाद
Tq
धन्यवाद