“साहित्य है समाज का दर्पण”

स्वयं को निखारना पड़ेगा
अभी और अग्नि में तपना पड़ेगा
ऐ लेखनी ! अभी तो तुझे
दूर तक जाना है
पाठक के हृदय में उतरना पड़ेगा
इस जिन्दगी के सफर में
कोई तो हो आधार
जिसको अपनी माला में
पिरोना पड़ेगा
साहित्य है समाज का दर्पण’
इसे तो पारदर्शी करना पड़ेगा….

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Responses

  1. साहित्य है समाज का दर्पण’
    इसे तो पारदर्शी करना पड़ेगा….
    _____बेशक साहित्य समाज का दर्पण ही है, कवि प्रज्ञा जी की अति उत्तम प्रस्तुति

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