Categories: शेर-ओ-शायरी
Tags: poetry with panna, शायरी
Panna
Panna.....Ek Khayal...Pathraya Sa!
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शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
हम क्या-क्या भूल गये
निकले हैं हम जो प्रगति पथ पर जड़ों को अपनी भूल गये मलमल के बिस्तरों में धँस के धरा की शीतलता भूल गये छूकर चलते…
मां तूं दुनिया मेरी
हरदम शिकायत तूं मुझे माना करती कहां निमकी-खोरमा छिपा के रखती कहां भाई से ही स्नेह मन में तेरे यहां रह के भी तूं रहती…
पछताओगे तुम, रुसवाईयां करोगे
पछताओगे तुम, रुसवाईयां करोगे गर छोड दिया हमने तेरी गलियों मे आना कभी तुझसे मुश्ते-मोहब्बत मांगी थी, कोई कोहिनूर नहीं बस तेरे दीदार की…
दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
thumbs up!
Good
बहुत सुंदर पंक्तियाँ
Waah waah
शानदार