राम बन जा आज तू
ओ युवा!!
भारत के मेरे,
राम बन जा आज तू,
खुद हरा भीतर का रावण,
धर्म धनु ले हाथ तू।
बढ़ रहे हैं नित दशानन
हम जला पुतला रहे हैं,
जल गया रावण समझ कर
खूब मन बहला रहे हैं।
बम-पटाखे फोड़ कर
रावण नहीं मर पायेगा
अब मरे सचमुच में रावण
कौन यह कर पायेगा।
अब भरोसा एक ही है
जाग तू प्यारे युवक
तू नया बदलाव ला दे
मार दे रावण युवक।
पापकर्मों में लगे हैं
सैकड़ों रावण यहां,
दस कहाँ लाखों मुखौटे
ढक रहे रावण यहाँ।
दम्भ में, अभिमान में
मद में, भरे रावण यहां,
पीसते कमजोर को हैं
लूटते रावण यहां।
नारियों पर जुल्म करते
दिख रहे रावण यहां,
भ्रूण हत्या पाप करते
सैकड़ों रावण यहाँ।
अब उठा ले तू धनुष
ओ युवा!! भारत के मेरे,
राम बन जा आज तू,
रावण मिटा दे आज रे।
—– डॉ0 सतीश चन्द्र पाण्डेय
चम्पावत, उत्तराखंड।
वाह, गजब की कविता लिख दी पाण्डेय जी, जितनी तारीफ की जाये कम है, आपकी लेखनी शानदार कर रही है। वाह
वाह सर, आज की कविताओं ने आनंदित कर दिया। जय हो
अतिसुंदर भाव
वाह सर बहुत ही सुन्दर कविता है । विजय दशमी के पावन अवसर पर श्री राम के आदर्शो को स्मरण करवाती हुई बेहद शानदार रचना । आज कल के समाज में ,समाज को सुधारने के लिए, ऐसी कविताओं की बहुत जरूरत है । उच्च स्तरीय लेखन
क्या बात है भाई अनमोल रचना है
बहुत खूब