रौशनी
रौशनी बहुत है मेरे यार तारे नहीं दिखेंगे,
गरीबों के माथे पे लिखे नारे नहीं दिखेंगे,
बचा लो इस घर को अभी ज़िंदा हो तुम,
मरने के बाद तो दर ओ दीवारे नहीं दिखेंगे,
काट दो ये बेडियाँ और कैद मत रहो यहाँ,
तुम्हारे बाद फिर वक्त के मारे नहीं दिखेंगे,
चलो ले चलो चाहें जैसे भी पार नदिया के,
हाथों में हाथ लोगे तो पतवारे नहीं दिखेंगे,
ये आखिरी पड़ाव नहीं है उम्र का जान लो,
अभी से तुम्हें आने वाले अंगारे नहीं दिखेंगे,
अभी भी रंज हैं ‘राही’ उठकर संभल जाओ,
गर्दिश-ए-दौर में उल्फत के सहारे नहीं दिखेंगे।।
राही अंजाना
वाह बहुत सुंदर रचना ढेरों बधाइयां
बहुत खूब
बहुत खूब
Impressive
Nice