विनती

मिले काँटे या मुझको फूल।
पर हो मेरे अनुकूल।।

इतना सुख न देना स्वामी जो मुझ में अभिमान जगाए।
इतना दुख न देना मालिक जो मुझको पल पल तड़पाए।।
सुख दुःख में ये विनयचंद कभी जाए न तुमको भूल।
मिले काँटे या मुझको फूल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

थन सम्पत्ति का ठाठ मिले या टूटी फूटी खाट मिले।
भोजन मधुर दिन रात मिले या निराहार दिन आठ मिले।।
पर विनयचंद की झोली में प्रभु मिले तुम्हारी चरण धूल।
मिले काँटे या मुझको फूल,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, =
पं़विनय शास्त्री

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

हम दीन-दुःखी, निर्बल, असहाय, प्रभु! माया के अधीन है ।।

हम दीन-दुखी, निर्बल, असहाय, प्रभु माया के अधीन है । प्रभु तुम दीनदयाल, दीनानाथ, दुखभंजन आदि प्रभु तेरो नाम है । हम माया के दासी,…

Responses

+

New Report

Close