विनती
मिले काँटे या मुझको फूल।
पर हो मेरे अनुकूल।।
इतना सुख न देना स्वामी जो मुझ में अभिमान जगाए।
इतना दुख न देना मालिक जो मुझको पल पल तड़पाए।।
सुख दुःख में ये विनयचंद कभी जाए न तुमको भूल।
मिले काँटे या मुझको फूल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
थन सम्पत्ति का ठाठ मिले या टूटी फूटी खाट मिले।
भोजन मधुर दिन रात मिले या निराहार दिन आठ मिले।।
पर विनयचंद की झोली में प्रभु मिले तुम्हारी चरण धूल।
मिले काँटे या मुझको फूल,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, =
पं़विनय शास्त्री
सुन्दर प्रस्तुति
Nice
भावपूर्ण रचना
Good one
Nice
वाह बहुत सुंदर
वाह वाह