विनम्रता की पराकाष्ठा
मां और पत्नी दोनों गुरू,
दोनों से नव-जीवन शुरू।
मां कहे , पत्नी सिखाती,
पत्नी कहे, मां सिखाती ।
विनम्रता की पराकाष्ठा देखो,
सिखाने का श्रेय एक-दूजे को दिलाती
✍️…गीता
मां और पत्नी दोनों गुरू,
दोनों से नव-जीवन शुरू।
मां कहे , पत्नी सिखाती,
पत्नी कहे, मां सिखाती ।
विनम्रता की पराकाष्ठा देखो,
सिखाने का श्रेय एक-दूजे को दिलाती
✍️…गीता
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हा हा हा…
अच्छा व्यंग है
Thanks pragya 🙂
अतिसुंदर भाव
बहुत बहुत धन्यवाद आपका भाई जी 🙏
बहुत सुंदर पंक्तियां, हास्य व्यंग
धन्यवाद जी
और साहस की बात यह भी है कि उन दोनों के सीखाएं गए ज्ञान को पचाना बड़ा मुश्किल हो जाता है बेटे को।
बहुत ही निष्पक्षता की आवश्यकता होती है इस ज्ञान के लिए 😊😊😁
बहुत ही बेहतरीन हास्य व्यंग कविता
बिल्कुल ऐसा ही होता होगा।
समीक्षा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
इस तरह की आदर्श स्थिति प्रस्तुत करने हेतु आपकी लेखनी की जितनी तारीफ की जाये वह कम है। जहां ऐसा है वहां वास्तव में स्नेह-प्रेम की व्यापकता रहती है।
बहुत खूब
इतनी सटीक समीक्षा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका सतीश जी 🙏🙏….आप मेरे लेखन में सच में बहुत उत्साह वर्धन करते हैं।
बहुत बहुत आभार
बहुत शानदार लेखन
बहुत बहुत शुक्रिया जी 🙏
वाह वाह
बहुत बहुत शुक्रिया चंद्रा जी🙏
Very nice गीता मैम
Thank you very much for your pricious comment 🙏
Wow, very nice poem
Thank you very very much Isha ji💐
Nice poem
Thank you very much 🙏
आप ने सच ही कहा है बहुत अच्छी लेखनी
धन्यवाद जी 🙏
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति ।
बहुत बहुत धन्यवाद जी 🙏
Atisundar Geeta ji
Thanks Allot Indu ji 🙏
हा हा हा बहुत ख़ूब बिल्कुल सही
शुक्रिया