सब में प्रभु पहचान
ऊँची तेरी शान रे बन्दे
सब में प्रभु पहचान रे बन्दे
कोई बड़ा न कोई छोटा
हर चेहरे पे झूठा मुखौटा
कहने को ही मन आँखे अपनी
कान भी पर दोषों का श्रोता
कहने को अपने सब झूठे धंधे —
सब में वही नित नृत्य है करता
सबकी समझ को रोज ही गढ्ता
अपने सोंच के हम हैं गुलाम
सब में वही थिरकता रहता
प्रार्थना से धो निज मन को मंदे—
ऊँची तेरी शान रे बन्दे
सब में प्रभु पहचान रे बन्दे
ऊँची तेरी शान रे बन्दे
सब में प्रभु पहचान रे बन्दे
___________ बहुत सुंदर रचना, अति उत्तम अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर रचना
बहुत सुंदर
अतिसुंदर भाव