सवाल ज़िन्दगी से
हज़ारों सवालों से भरी ये ज़िन्दगी
कभी खुद के वजूद पर सवाल उठाती
कभीचलती भी,कभी दौड़ती भी है
ये थक कर कभी चूर चूर हो जाती
हर दिन नए हौसलों को संग लेकर
शाम ढलते जैसे उम्मीदें तोड़ जाती
कभी मज़बूरियों का वास्ता देकर ये
अपने होने का सही मकसद भूल जाती
सुकून की खोज में भटकती फिरती ये
क्यों खुद में हर सुख ये नहीं तलाशती
मोह है न जाने किस चीज़ का इसको
शायद ज़िन्दगी खुद ही न समझ पाती
क्यों कल की चिंता में आज को बिताना
क्यों नहीं आशावादी ये रुख अपनाती
©अनीता शर्मा
Nice
Shukriya 🙏🏼
Nyc
Thank you🙏🏼
शाम ढलती। कभी चलती भी।
👍😊
वेलकम
वाह
Shukriya 🙏🏼
वाह वाह
Shukriya 🙏🏼
जीवन पर बहुत ही सुंदर
कविता