सिसक रही तन्हाई, अब साथी से क्या होगा ????
सिसक रही तन्हाई
अब क्या साथी से होगा ?
जब मन के घाव बने नासूर
तब मरहम से क्या होगा ?
हम तो अपने ही घर में
हाँ, हो गये एक रोज पराये
बन बैठे आज फफोले
थे जो तुमने घाव लगाये
अभिमन्यु- सा तुमने
मुझको चक्रव्यूह में घेरा
जब हाथ था मैने बढा़या
तब तुमने ही था मुंह फेरा
मंजिल-मंजिल करके तुम
फिर मुझसे दूर गये थे
क्या भूल गये वो दिन तुम
जब मुझसे दूर गये थे…
सिसक रही तन्हाई
अब क्या साथी से होगा ?
जब मन के घाव बने नासूर
तब मरहम से क्या होगा ?
____________ अपने साथी को तनहाई में याद करती हुई कवि प्रज्ञा जी की, बेहद मार्मिक रचना। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत बहुत धन्यवाद गीता जी
अतिसुंदर मार्मिक भाव प्रस्तुत करती हुई रचना
आभार है आपका सर
आपकी आलोचना मन भाती है
वाह!!
लोकप्रिय कवि प्रज्ञा जी का अद्भुत लेखन
काबिलेतारीफ है
Thanks
काबिले तारीफ रचना
Thanks
बहुत ही लाजवाब अभिव्यक्ति
Tq
वाह वाह क्या बात है
शानदार प्रस्तुति
Tq
धन्यवाद
Thanks