सीता-राम की प्रथम भेंट

सीता वियोग में बहुत
विकल थे
प्रज्ञा के श्रीराम !
एकाएक याद हो आई
सिय से प्रथम मिलन की बेला !!
ज्यों घोर तिमिर में कौंध
उठी हो अकस्मात दामिनी
त्यों राम हृदय में
जगमगा उठी
सीता से जनक वाटिका में
हुई प्रथम भेंट
लता-कुंजों की ओट से
सीता-राम दोंनो एक दूजे को
निष्पलक देख रहे थे..
फिर संकोचवश नेत्र संगोपन
करने लगे
नेत्र निमीलन और उन्मीलन
की इस प्रक्रिया से कोयल
कूँकने लगती हैं
मकरन्द बिखरने लगते हैं
आकाशमार्ग से पुष्पों की
वर्षा होने लगती है
रामभक्त प्रज्ञा !
का हृदय
उनकी तुरीयावस्था देखकर
अच्युत रह जाता है और
आत्मविस्तृत हो उठता है…

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