Ghazal
चिर परिचित जब कोई आ टकराता ख्वाब में,
फिजा का हर रंग तब घुल जाता शवाब में।
स्वप्न सुनहरा पलकों पर घर कर लेता,
रात छोटी पर जाती ख्यालों के ठहराव में।
वक्त का फासला मिट जाता एक सांस में,
कोई फर्क ना रहता उस मोड़ इस पड़ाव में।
धुंधली सी सही चंद तस्वीरें उभर आती,
जो कभी दूर छुटा वक्त के बहाव में।
ख्यालों के साथ साथ रात झुमने लगता,
ऐसा नशा नहीं मिलता कभी शराब में।
Atisunder
Thank you
Sunder
Thank you
Wah kya khub likha hai
Thank you
बहुत खूब
Thank you sir
Nice
Thank you sir
धुंधली सी सही चंद तस्वीरें उभर आती,,,, beautiful
Thank you sir
Good
Thank you
Nice
Thank you
वाह बहुत सुंदर रचना
Thanks
वाह