गजल- कोरोना कहर
गजल- कोरोना कहर
माना की कोरोना कहर बड़ा मगर आया नहीं |
सारा जहाँ दहसत मे हिन्द मगर छाया नही |
फानूस बनके करता हिफाजत वजीरे आलम |
ठहर गया वो लोकडाउन से कुछ कर पाया नहीं |
मिल रहा वतन जंगे कोरोना हर खासो आम |
जीत लेंगे जंग क्या हुआ गर कुछ खाया नहीं |
है सजग सब कर्मबीर जान अब बचाने सबकी |
घर कैद जिंदगी और बेटा घर पहुँच पाया नही|
खींच दिया लक्ष्मण रेखा दहलीज वजीरे आलम|
माकां मे कैद आदमी कोरोना से मर पाया नहीं |
मुंह पे नकाब जेब सेनेटाइजर लेकर जाना बाहर |
रखना दूरिया तुम लोगो साथ कोरोना लाया नहीं |
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286
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