पावन प्रकृति

जहां हवाएं पल-पल बनाएं एक नई तस्वीर
उसी आकाश में लिखना चाहूं मैं अपनी तकदीर
नन्ही बूंदे नई किरण संग बना रही रंगोली
मैं भी सुख के मोती ले लूं फैलाकर अपनी झोली
अपने हृदय में संजो के रख लू ऐसी मीठी यादें
जहां द्वेष ना कोई जलन हो सबकी प्यारी बातें
पल-पल की शांति को तोड़े कुछ ना छोड़े बाकी
बहती उस शैतान पवन की देखूं मैं गुस्ताखी
जहां घाटिया नाप रही हो अंधकार की सीमा
वही निझरनी प्रेम से बहती ना लांगे थी गरिमा
कुछ पल में भी सुनना चाहूं पंछियों की दो बातें
प्रकृति गोद में देखू सुख की पल-पल की बरसाते
जहां पे कोयल सुना रही हो एक प्यारा सा गीत
जहां पे जा एक साथ जुड़ रही धरा और नव की प्रीत

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Responses

  1. प्राकृतिक छटा के साथ खेलने की चाह रख रहे मन की सहज अभिव्यक्ति हुई है। शब्द युग्म ‘पल-पल’ का प्रयोग सुंदरता बढ़ा रहा है।
    सुख के मोती ले लूं फैलाकर अपनी झोली
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

  2. प्रकृति का सुंदर प्रयोग करती हुई रचना बहुत ही सुंदर कला पक्ष

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