तेरी रजधूल ओ प्रियतम!
तुम्हारी राह देखकर ही तो मैं टूट गई
हर रिश्ते से ऊपर था तू
तेरे इश्क में मैं मगरूर हुई
तेरे इश्क का चंदन घिसकर
अंग प्रफुल्लित हुए सदा
तेरी रजधूल ओ प्रियतम! मेरे
मेरी माँग का सिन्दूर हुई।
बूंद-बूंद कर मैनें तेरे प्रेम का
रसपान किया
तेरे नाम से ही मैनें
नवजीवन का निर्माण किया।
तेरी स्मृतियों के आगे मैं तो
खुद को भी भूल गई।
फिर क्यों छोड़ा दामन तुमने
आखिर मुझसे क्या खता हुई?
तेरे वियोग में ओ प्रियतम!
यह प्रज्ञा!
कल पुष्प-सी थी अब शूल हुई।।
वाह क्या बात है, कितनी गहरी बात है कविता में, जियो
🙏🙏
Nice poetry
🙏🙏
nice
धन्यवाद
बहुत सुन्दर
🙏🙏
bhut sindar
धन्यवाद 🙏🙏
सहज सुन्दर शब्दकोश
आपने प्यार का कोना कोना झाँक लिया है इस कविता में।
awesome poetry
धन्यवाद
🙏🙏👏👏
वाह क्या बात है।
उत्तम भाव पूर्ण रचना
🙏🙏
थैंक्स फॉर कमेंट्स
बहुत बढ़िया