मैं खुद से भी ज़्यादा बेहतर..
‘सबसे पहले मैं दुनियाँ में
इस रिश्ते को पहचानती हूँ..
मैं खुद से भी ज़्यादा बेहतर,
अपने पापा को जानती हूँ..
वो कहते हैं कि जान मेरी,
मेरी गुड़िया में बसती है..
मैं कहती हूँ कि बस पापा
इक आप से मेरी हस्ती है..
बस वही जगह है उनकी भी,
जितना मैं रब को मानती हूँ..
मैं खुद से भी ज़्यादा बेहतर,
अपने पापा को जानती हूँ..
‘तू लाई क्या है मायके से’,
यह तीर हृदय को भेद गया..
न खुशियों से प्रफुल्ल हुआ,
न कभी ये मन से खेद गया..
ससुराल के ऐसे तानों को,
अच्छी बातों से छानती हूँ..
मैं खुद से भी ज़्यादा बेहतर,
अपने पापा को जानती हूँ..
वो खुद जो पैदल चलते थे,
उन्होंने आपको गाड़ी दी,
जीवन में जो भी सहेजा था,
वो मेहनत अपनी गाढ़ी दी,
अब उनके पास नही है कुछ,
यह बात हृदय से जानती हूँ..
मैं खुद से भी ज़्यादा बेहतर,
अपने पापा को जानती हूँ..’
#दहेजप्रथा
– प्रयाग
वाह वाह, बहुत खूब
आभार आपका
बहुत सुन्दर
बहुत शुक्रिया
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
पिता बेटी के मधुर प्रेम को प्रकट करती हुई सुंदर प्रस्तुति
एक पिता अपनी पूरी जिंदगी अपनी बेटी का जीवन खुशहाल बनाने के लिए लगा देता है मगर दहेज के लोभियों का मुह दानव से भी ज्यादा लंबा और चौड़ा है जो हमेशा खुलता रहता है
उत्प्रेरक समीक्षा के लिए आपका आभार
सुन्दर
जी बहुत शुक्रिया आपका
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ ।
बहुत बहुत आभार आपका
ससुराल में सबने पूछा ,बहू दहेज़ में क्या लाई,
किसी ने ये नहीं देखा, एक बेटी क्या – क्या छोड़ के आई…
बहुत अच्छी कविता लिखी है।आपकी लेखनी को प्रणाम🙏
कविता के मर्म तक पहुँचने के लिए आपका आभार
सुस्वागतम् 🙏
गीता जी की समीक्षा शक्ति भी काबिलेतारीफ है, सैल्यूट
मैं भी आपसे पूरी तरह सहमत हूँ सर
बहुत बहुत धन्यवाद आपका 🙏
आपने सत्य को उजागर करने में भरपूर सफलता पाई है। वाकई ससुराल में पूछा जाता है, कि क्या लेकर आई है। यह नहीं देखा जाता कि बचपन से लेकर अब तक का पूरा संसार ही छोड़ कर आई है।
जी बहुत शुक्रिया सर
जी बिल्कुल यही तो विडम्बना है।
कितनी मोहक कविता है बहुत सुंदर
सादर धन्यवाद आपका
Very nice👏👏
शुक्रिया आपका
Very nice lines
🙏🙏
आभार आपका