क्यों बच गई है मैं?

क्यों मैं बच गयी, उन कहरो से,
भ्रूण हत्या, कुरीतियों, और अमावताओं से,
मिट जाती मिट्टी में,
न होती मेरी पहचान,
न होती मैं बदनाम,
न होती मैं हैवानों से दो चार,
न होती यौन शोषण का शिकार,
न चढ़ती मैं दहेज़ की बलि,
न होती एसिड अटैक का शिकार,
न बलात्कारियों की बनती हवस,
क्यों बच गयी मैं?
क्यों बच गयी मैं?
निभाते- निभाते सहते- सहते,
थक गयी हूँ मैं,
ये ज़िदंगी मिली है मुझे,
फिर भी हँस लेती हूँ मैं,
फिर लगता है,
क्यों नही मैं बन जाऊ,
इस पाप की भागीदार,
न दू बेटी समाज को,
मिटा दू उसकी पहचान,
फिर से न उठ जाये ये सवाल,
क्यों बच गयी मैं,?
क्यों बच गयी मैं?

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Responses

  1. जितनी प्रशंसा करें उतनी कम है
    इस कविता के प्रशंसा में
    लिखने के लिए मेरे पास शब्द नहीं
    बहुत अच्छी कविता

  2. नारी पर हो रहे शोषण के हर पहलू को बहुत ही सुंदर ढंग से और विस्तार से उजागर किया गया है, नकारात्मकता में भी कहीं ना कहीं नारी की श्रेष्ठता को दिखाया गया है ,बहुत ही उम्दा 👏👏
    और अंत में बहुत ही बेहतरीन तरीके से नारी के महत्व को बताने की कोशिश कि अगर नारी ना हो तो समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
    बहुत ही बेहतरीन एवं भावपूर्ण रचना ,👏👏👏

  3. अंत तक आते आते आपकी कविता एक बड़ा सवाल दाग देती है देश और समाज पर..इस ज्वलंत रचना के लिए आपको बधाई ।

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