क्यों बच गई है मैं?
क्यों मैं बच गयी, उन कहरो से,
भ्रूण हत्या, कुरीतियों, और अमावताओं से,
मिट जाती मिट्टी में,
न होती मेरी पहचान,
न होती मैं बदनाम,
न होती मैं हैवानों से दो चार,
न होती यौन शोषण का शिकार,
न चढ़ती मैं दहेज़ की बलि,
न होती एसिड अटैक का शिकार,
न बलात्कारियों की बनती हवस,
क्यों बच गयी मैं?
क्यों बच गयी मैं?
निभाते- निभाते सहते- सहते,
थक गयी हूँ मैं,
ये ज़िदंगी मिली है मुझे,
फिर भी हँस लेती हूँ मैं,
फिर लगता है,
क्यों नही मैं बन जाऊ,
इस पाप की भागीदार,
न दू बेटी समाज को,
मिटा दू उसकी पहचान,
फिर से न उठ जाये ये सवाल,
क्यों बच गयी मैं,?
क्यों बच गयी मैं?
सुन्दर और उदारवादी भाव
Thank you
बेहद संजीदा रचना
धन्यवाद मैम
वाह वाह बहुत खूब
Thank you
Nice one
Thank you
Good
धन्यवाद
जितनी प्रशंसा करें उतनी कम है
इस कविता के प्रशंसा में
लिखने के लिए मेरे पास शब्द नहीं
बहुत अच्छी कविता
Thank you
समाज को उसका आईना दिखाती है आपकी कविता
वसुंधरा जी! बहुत-बहुत धन्यवाद
नारी पर हो रहे शोषण के हर पहलू को बहुत ही सुंदर ढंग से और विस्तार से उजागर किया गया है, नकारात्मकता में भी कहीं ना कहीं नारी की श्रेष्ठता को दिखाया गया है ,बहुत ही उम्दा 👏👏
और अंत में बहुत ही बेहतरीन तरीके से नारी के महत्व को बताने की कोशिश कि अगर नारी ना हो तो समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
बहुत ही बेहतरीन एवं भावपूर्ण रचना ,👏👏👏
बहुत बहुत धन्यवाद इतनी अच्छी समीक्षा करने के लिए और हौसला बढ़ाने के लिए 🙏
nice poem pratima ji
Thank you
अंत तक आते आते आपकी कविता एक बड़ा सवाल दाग देती है देश और समाज पर..इस ज्वलंत रचना के लिए आपको बधाई ।
शुक्रिया सर
एक ज्वलंत समस्या का बेहद खूबसूरत और मार्मिक चित्रण 👏👏
धन्यवाद मैम जी
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति
महिलाओं की समस्याओं का सटीक चित्रण
बहुत-बहुत आभार
bahut sundar rachna nari jivan par
हार्दिक धन्यवाद
धन्यवाद जी