Categories: शेर-ओ-शायरी
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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34
जो तुम चिर प्रतीक्षित सहचर मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष तुम्हे होगा निश्चय ही प्रियकर बात बताता हूँ। तुमसे पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…
प्रेम का संदेश दें
अपनी खुशियों पर रहें खुश दूसरों से क्यों भिड़ें, बात छोटी को बड़ी कर पशु सरीखे क्यों लड़ें। जिन्दगी जीनी सभी ने क्यों किसी को…
मन की पतंग
मीठे मीठे सपने संजोने दो होता है जो उसे होने दो कल का पता नहीं क्या होगा बाहों में और थोड़ा सोने दो ।……….. जागी…
ऐसा क्यों है
चारो दिशाओं में छाया इतना कुहा सा क्यों है यहाँ जर्रे जर्रे में बिखरा इतना धुआँ सा क्यों है शहर के चप्पे चप्पे पर तैनात…
दोस्ती
चलो थोडा दिल हल्का करें कुछ गलतियां माफ़ कर आगे बढें बरसों लग गए यहाँ तक आने में इस रिश्ते को यूं ही न ज़ाया…
बहुत ही अच्छी कविता ।
सरल शब्दों में अपनी व्यथा का बखान
बहुत बहुत धन्यवाद सुमन जी
भावपूर्ण
बहुत बहुत धन्यवाद प्रज्ञा जी
सुंदर
Thank you sir
सुन्दर पंक्तियाँ
धन्यवाद सर