आशु कवि
जब कविता लिखने का कोई
मूड नहीं बन पाता है
मार सुड़ुप्पा चाय का प्यारे !
ये दिल आशु कवि बन जाता है
दो-तीन कपों में मैं तो पूरी
कविता लिख लेती हूँ
पाँच कपों में खण्डकाव्य और
निबंध का सृजन कर लेती हूँ
यदि होती कोई टेंशन है तो
चाय का सुट्टा मार के मैं
खुद को टेंशन फ्री कर लेती हूँ
यदि पी लूँ पच्चीस प्याला चाय
तो टोन में फिर आ जाती हूँ
महाकाव्य लिखकर ही मैं
नशे से बाहर आती हूँ…
वाह क्या बात है, बहुत सुंदर, कवि की प्रखरता है चाय में छलक जाती है
धन्यवाद आपका बहुत-बहुत
हा हा हा प्रज्ञा हम भी आ रहे है तुम्हारे घर तुम्हारी स्पेशल चाय पीने।
नहीं तो ब्रैंड बता दो हम भी मांगा लेंगे ।हमें भी महा काव्य लिखने हैं ….बहुत ही सुंदर और प्यारी कविता है । हल्के फुल्के हास्य ने रचना में चार चांद लगा दिए हैं । बहुत सुंदर प्रस्तुति ।
अदरक, इलायची और जरांकुश डालकर चाय बनाएं…
मसाला चाय या ताजमहल मगाएं
जी बिल्कुल आइये मैं चाय बहुत अच्छी बनाती हूँ…
सुन्दर
Thanks
बहुत खूब