क्या बेटी होना गुनाह है
क़भी कोख़ में ही मार डाला उसे,
कभी काट के फेंक दिया खलिहानों में!!
कभी बेंच दिया उसे देह के बाज़ारों में ,
क़भी सरेराह नोचा सड़कों और चौराहों पे!!
जब जी चाहा पूजा देवियों सा,
कभी अपमानित किया उसे गालियों से!!
आगे बढ़ने की चाहत की तो दीवारों में क़ैद हुई,
कभी मान की ख़ातिर उसको झोंक दिया अंगारों में!!
दुर्गा,काली की धरती पर कैसी ये विडंबना ,
इस देश में बेटी होना क्यों है एक गुनाह.. ??
©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
बहुत ही मार्मिक रचना
धन्यवाद 🙂
बहुत गंभीर व मार्मिक अभिव्यक्ति,
धन्यवाद सर
अतिसुंदर
धन्यवाद
मार्मिक रचना