आंखों में चाहत, सजी हुई है
आंखों में चाहत, सजी हुई है,
दिलों की धड़कन, बढ़ी हुई है।
न कह सके हैं वो, कुछ भी हमसे,
हमें भी हिम्मत, नहीं हुई है।
मगर आहटें ये, बता रही हैं,
दस्तक तो है पर, छिपा रही हैं।
गुलाब से होंठो, को दबाकर
भीतर ही मुस्कान, छिपा रही है।
न वो बताती है, बात क्या है,
न हम बताते हैं, राज क्या है।
बिना ही बोले न जाने कैसे,
स्वयं मुहोब्बत, जता रही है।
ख्याल रखती है, दिल से लेकिन
रखती है क्यों यह, छिपा रही है,
न बोल मुख से मुहोब्बत की बातें
इशारे इशारे से समझा रही है।
Beautiful poem
Very beautiful poem,and poet satish ji beautifully expressed his feelings.very nice sir.
बहुत खूब
बहुत खूब