उषा काल की मॅंजुल बेला
उगते सूर्य की रश्मियाँ,
जब-जब पड़ी हरित किसलय पर
सुनहरी पत्तियाँ हो गईं,
देख सुनहरी आभा उनकी,
आली, मैं कहीं खो गई।
वृक्षों के बीच-बीच से,
रश्मियाँ छन-छन कर आती थीं
उषा काल की सुन्दर बेला में,
मेरे मन को भाती थीं।
उषा काल की सूर्य रश्मियाँ,
सबके भाग जगाती हैं।
कोयल भी कुहू-कुहू कर,
मीठे राग सुनाती है।
उषा काल की मॅंजुल बेला,
मन को बहुत लुभाती है।
ठॅंडी-ठॅंडी पवन बहे जब,
याद किसी की आती है॥
____✍गीता
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
सादर धन्यवाद भाई जी🙏
उषा काल की मॅंजुल बेला,
मन को बहुत लुभाती है।
ठॅंडी-ठॅंडी पवन बहे जब,
याद किसी की आती है।
—— अति उत्तम रचना, कवि गीता जी की लेखनी से प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत चित्रण हुआ है।
उत्साहवर्धक समीक्षा हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद सतीश जी। आपकी दी हुई समीक्षाओं से लेखन की ऊर्जा और उत्साह प्राप्त होता है, अभिवादन सर
बहुत सुंदर प्रस्तुति
हार्दिक धन्यवाद चंद्रा जी सराहना हेतु आभार मैम
बहुत खूब
हार्दिक धन्यवाद कमला जी
हार्दिक धन्यवाद कमला जी
उगते सूर्य की रश्मियाँ,
जब-जब पड़ी हरित किसलय पर
सुनहरी पत्तियाँ हो गईं,
देख सुनहरी आभा उनकी,
आली, मैं कहीं खो गई।
वृक्षों के बीच-बीच से,
रश्मियाँ छन-छन कर आती थीं..
सुंदर अभिव्यक्ति