प्रा:त काल में सुन्दर नज़राना

हरी दूब पर सुबह सवेरे,
किस के बिखर गए हैं मोती।
किस जौहरी का लुट गया है,
देखो सुबह-सुबह खजाना।
पुष्प और पल्लव सब मुस्काए,
ये किसने हीरे बिखराए।
देखो प्रकृति लुटा रही है,
प्रा:त काल में सुन्दर नज़राना।
स्वर्ण बरसा रही हैं देखो,
सुबह-सुबह सूरज की किरणें।
अभी तलक क्यों सो रहे हो,
उठो सवेरा हो गया है॥
______✍गीता

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Responses

  1. स्वर्ण बरसा रही हैं देखो,
    सुबह-सुबह सूरज की किरणें।
    अभी तलक क्यों सो रहे हो,
    उठो सवेरा हो गया है॥
    —— बहुत ही शानदार लेखनी है। अत्यंत निर्मल भाव हैं। वाह वाह

    1. इस उत्साहवर्धक समीक्षा के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सतीश जी, हार्दिक आभार सर

  2. स्वर्ण बरसा रही हैं देखो,
    सुबह-सुबह सूरज की किरणें।…… सुबह का बहुत सुंदर वर्णन और अनुप्रास अलंकार से सजी बहुत लाजवाब कविता

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