साध्य और साधन

शोषक और शोषित
दो समांतर रेखाओं की तरह हैं
जिनका कभी मिलन नहीं होता
इसलिए शोषण का कभी अंत नहीं होता

शोषक चाहे अफ्रीका का हो
चाहे अमरीका का हो
हिंदुस्तान का
सीरिया या पाकिस्तान का
उनकी
भाषाएँ अलग हैं
मान्यताएं अलग हैं
चेहरे अलग हैं
पर मानसिकताएं एक जैसी हैं

उनके तने अलग अलग हैं
उनकी शाखाएं पतली मोटी हो सकती हैं
उनकी पत्तियां संकरी चौड़ी हो सकती हैं
उनके फूल विविध रंगों के हो सकते हैं
पर ज़मीन के अंदर जड़ें एक जैसी हैं

शोषण की नदी बहती है
उत्तर से दक्षिण तक
पूरब से पश्चिम तक
कहीं गहराई ज़्यादा है
कहीं छिछलापन है
पर शोषण की एक ही विचारधारा है

मुट्ठी भर लोग ही राज करना चाहते हैं
कभी धर्म के नाम पर
कभी पूंजी के नाम पर
कभी मनुवाद लाया जाएगा
कभी मार्क्सवाद अपनाया जाएगा
कभी ईश्वर के नाम पर डराया जाएगा
कभी राष्ट्रवाद भड़काया जाएगा

उनके
मन में सिर्फ एक बात गूंजती है
कि हम तुम से बेहतर है
और
शोषण ही होगा
जो माना जा रहा कमतर है

जैसे उत्तम नस्ल की ग़लतफ़हमी में
एक हिटलर बन गया
और संसार को युद्ध की आग में झोंक दिया
जैसे अतिराष्ट्रवादऔर नस्लवाद की कोख से
मुसोलिनी का जन्म हुआ
जैसे स्टालिन ने मार्क्स और लेनिन की गोद में बैठकर
जघन्य हत्याएं की
सद्दाम हुसैन,पोल पॉट,गद्दाफ़ी, माओ
और न जाने और कौन कौन से नाम

ऐसा प्रतीत होता है कि
इतिहास इंसानों का इतिहास नही
नेताओं का इतिहास नहीं
विकास का इतिहास नहीं
विचार का इतिहास नहीं
पूरा का पूरा इतिहास
शोषण का ही इतिहास है
आक्रांताओं का ही इतिहास है
जितने युद्ध लड़े गए
न्याय युद्ध तो एक भी नहीं
मानवता के लिए तो एक भी नहीं

भारत में आर्य आए
सुल्तान आए
मुग़ल आए
फ़्रांसिसी ,पुर्तगाली
फिर अंग्रेज़
सब के सब शोषण के लिए
सत्ता का रस पीने के लिए
सामान्य जन का खून पीने के लिए
आज भी रक्त पिपासु ही है
ये मुट्ठी भर लोग
जो किसी भी प्रकार से
छल से ,बल से ,विचार से ,भरमाकर
अपनी स्वार्थ सिद्धि ही करना चाहते हैं
कोई लेना देना नहीं
मानवता से
साध्य हैं उनके लिए सत्ता
और साधन है
आम जनता ।

तेज

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