कुछ खास
कुछ खास है वो मेरे वास्ते दे गए सब बिना मोल-भाव के राजेश’अरमान’
कुछ खास है वो मेरे वास्ते दे गए सब बिना मोल-भाव के राजेश’अरमान’
वीराने भी अब गुफ्तगू करने लगे नज़र लग गयी इसे भी जमाने की राजेश’अरमान’
चाहा था इक बार फिर अजनबी बन जाना वो मिलते है हर बार अब अजनबी से राजेश’अरमान’
कुछ तो हैरान होगी ज़िंदगी भी जब हमने अपना मुँह मोड़ लिया राजेश’अरमान’
मंज़िल की बेताबी खत्म हुई यूँ कारवां से दिल लगाया हमने राजेश’अरमान’
क्यों यह परदा दारी है, आ खुल के मेरे सामने आ मुझसे नज़र मिला के कह, तू कभी ना ग़लत हुआ सब नजरों में बन…
गरूर–ए–नजर में तेरी, मेरा सर झुका रहा तूने जब आवाज़ दी, दिल ने पलट कर कहा शायद तूँ बदल गया, घर मेरा मुझे मिल गया…
रूह मेरी तड़प तड़प गई, तूने ना पुकार सुनी तुझसे ना–उम्मीदी में, बैरंग सी यह फिज़ा बुनी ज़िन्दगी तो बसर गई, हर रिश्ता तार–तार हुआ…
जाने क्यों तुम नाराज हुए, ख़ुद ही मुझको ज़ुदा किया ना थे हम हमराज़ कभी, फिर क्यों यह शिकवा किया ता–उमर चली तूने अपनी राह्,…
था मैं चला कहां से, इसकी ना कोई याद मुझे हुआ मैं ग़लत कहां पे, इसका ना आभास मुझे चेतना है धुंधली सी, शायद था…
जुर्म उनके ,सितम उनके ,खता उनकी हम तो अब भी खाली हाथ बैठे है राजेश’अरमान’
जीतने की ख्वाइश में कछुए सा चल रहा हूँ, लेकिन ख्वाइशों का खरगोश सोने के लिए रूकता ही नहीं राजेश’अरमान’
अपने साये भी अब अनजान नज़र आते है बिन बुलाये से मेहमान नज़र आते है हर शक्स उदास हर रिश्ते अब तो पत्थरों से ये…
तालीम कुछ गिनती की यूँ काम आई बस जाती सांसों को गिनता रह गया राजेश’अरमान’
सच ने जब भी तोडा है दम झूठ ने ही उसे अग्नि दी है राजेश’अरमान’
था वो गुलाब के मानिंद नज़र बस तेरी काटों पे गड़ी मैंने भी महसूस किया कैक्टस को नज़रे जो कभी फूलों पे पड़ी राजेश’अरमान’
जब अपनी ही साँसें एहसान जताने लगे समझ लो साँसें भी अपनी हो गई है राजेश’अरमान’
धर्म की दूकान सदियों से चल रही है , कीमत तो चुकाई पर सामान नहीं मिला राजेश’अरमान’
बिखरी जा रही ज़िंदगी कुछ तेज रफ़्तार से कोई मोहलत नहीं कुछ भी दुरुस्त करने को राजेश’अरमान’
तेरी बेरुखी इस कदर काम कर गई बेवज़ह वक़्त को बदनाम कर गई रिश्तों पे पड़ी धूल जब जमने लगी ख़ामोशी के राज़ सरेआम कर…
हर फैसले मेरे तेरे क़दमों में थे तूने क़दमों का फ़ासला कर लिया न हो दरम्यां सांसें भी अपनी लेकिन , तूने ज़ख्मों का काफिला…
अजैविक गम की खाद से ख़ुशी हो गई बोन्साई राजेश’अरमान’
होठों पे ख़ामोशी की लहरें ढूंढ़ती है लफ़्ज़ों के समुन्दर राजेश’अरमान’
कुछ तो बात है तेरे शहर की ये ज़ख्मों को भी तन्हा नहीं रखते राजेश’अरमान’
वो खफा है अब इस बात पर आता नहीं सलीका गम उठाने का राजेश ‘अरमान’
अपनी उलझनों के हम यूँ आदी हो गए है कभी मुजरिम तो कभी फरियादी हो गए है न होता कुछ तो कुछ और जरूर होता…
ღღ__मैं कह ही नहीं पाता, या तुम समझ नहीं पाते साहब; . कि अक्सर कुछ सवालों के, कोई जवाब नहीं होते !!…..#अक्स .
ख़्वाबे-वफ़ा के ज़िस्म की खराश देखकर इन आँसुओं की बिखरी हुई लाश देखकर जब से चला हूँ मैं कहीं ठहरा न एक पल राहें भी…
सब लफ़्जो का खेल है इस दुनिया में ये ही रिश्ते बनाते भी है बिगाड़ते भी यही है
ღღ__इसमें कोई शक नहीं, कि तुम सबसे जुदा थे “साहब”; . मगर ऐसा भी क्या जुदा होना, कि हमसे ही जुदा रहो!!…..#अक्स .
ღღ__तू गर नाराज़ है मुझसे, तो रह, खुदा करे; . मैं भी चाहता हूँ मेरे हक़ में, कोई बद्दुआ करे!!……#अक्स .
ღღ__इबादतगाह भी जाऊं तो, तुझे ही ढूँढती हैं नज़रें; . शौक-ए-दीदार ने तेरे, मुझे काफ़िर बना दिया !!…..#अक्स .
ღღ__आखिर इसमें उनकी, खता भी क्या है साहब; . जब मोम सा दिल रखोगे, तो दुनिया जलाएगी !!……#अक्स .
सुनते हो साहब, मोहब्बत गुज़र रही है अपनी; . ღღ__मैंने देखा था उसे, तेरे साथ जाते हुए !!….#अक्स .
ღღ__वो इक पल जिसमें तुम्हारे लब हों, मेरे लबों के पास; . उस वक़्त भी हम रहें शरीफ?? “तौबा साहब, तौबा” !!…..#अक्स .
चाहतों की दुनिया से अब उकता गये है सब दिखता है यहां, मगर कुछ मिलता नहीं
ღღ__यूँ तो अरसा हुआ है साहब, तुमसे गले मिले हुए; . पर जिस्म मेरा आज भी, इत्र-सा महकता है !!……#अक्स .
लो आ ही गयी साहब, उनकी याद, आज फिर आखिर; . और वो आज फिर नहीं आये, इतने इंतज़ार के बाद !!…..#अक्स
वो खुशनुमा चेहरा कितना नूरदार है आज की रात जैसे फैल गया हो चांद पिघलकर उनके रूखसारों पर
जब से तुझको पाया है , जिव देखो तुझ्सा लगता है , दुनियाँ मानो शीश महल , हर चेहरा ख़ुद का लगता है I …
ღღ__आँखों को ख्वाब की, इस कदर भूख है साहब; . जैसे लगता है ख्वाब में, “तुम” आ ही जाओगे!!…..#अक्स .
तसव्वुर में तेरे, अब तो कटती नहीं रातें; . आखिर तेरे इंतज़ार की, कोई इन्तेहा तो हो!!….#अक्स
ढूंढने से ही मिलता है, पर रस्ता ज़रूर होता है; जो महँगा होता है कभी, वो सस्ता ज़रूर होता है!!…..#अक्स
ღღ__ख्वाहिश है इश्क की, और वो भी सुकून के साथ; . तुम भी ना साहब, कभी-2 अच्छा मजाक करते हो !!……#अक्स .
ღღ__दिल तो करता है कभी-2, तेरी यादों को ज़हर दे दूँ साहब; . फिर सोंचता हूँ, भला ये भी, कोई उम्र है ख़ुदकुशी करने की!!….#अक्स…
इस वीराने में अचानक बहार कहां से आ गयी गौर से देखा तो ये महज़ इज़हार ए तसव्वुर था
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