ज़िन्दगी ना थी – 7
ज़िन्दगी ना थी कुछ हमारी, जैसी तुम्हारी आस्मानी अरमानो के ना थे पंख हमारे, जैसे तुम्हारे
ज़िन्दगी ना थी कुछ हमारी, जैसी तुम्हारी आस्मानी अरमानो के ना थे पंख हमारे, जैसे तुम्हारे
ज़िन्दगी ना थी कुछ हमारी, जैसी तुम्हारी आँखों में ना थे सपने रंगीन हमारे, जैसे तुम्हारे
ज़िन्दगी ना थी कुछ हमारी, जैसी तुम्हारी बाज़ूओं को ना था कोई सहांरा, जैसा तुम्हारा
ज़िन्दगी ना थी कुछ हमारी, जैसी तुम्हारी बचपन ना था बचपन हमारा, जैसा तुम्हारा
ज़िन्दगी ना थी कुछ हमारी, जैसी तुम्हारी मजबूरियाँ थी अजब सबकी हमारी, ना जैसी तुम्हारी
ज़िन्दगी ना थी कुछ हमारी, जैसी तुम्हारी दीवारें थी कच्ची कमजोर हमारी, ना जैसी तुम्हारी
ज़िन्दगी ना थी कुछ हमारी, जैसी तुम्हारी पक्की छत ना थी सर पे हमारी, जैसी तुम्हारी
जो हूँ मैं वह जिंदा रंगों-छंदों मैँ, जो नहीं मैं वह दुनियावी धंधो में
जो हूँ मैं वह हर पल शिल्पकार है, जो नहीं मैं वह मुर्दा बेकार है
जो हूँ मैं वह अन्दर से हूँ सुंदर, जो नहीं मैं वह बाहर हूँ आडंबर
जो हूँ मैं वह है सबका सदा, जो नहीं मैं वह ना किसी का सगा
जो हूँ मैं वह पूर्ण एह्सास हूँ, जो नहीं मैं वह शून्य का वास हूँ
जो हूँ मैं वह तो है मेरे सुकर्म, जो नहीं मैं वह थे मेरे दुष्कर्म जो हूँ मैं वह सबका मीत है, जो नहीं मैं…
जो हूँ मैं वह हूँ हवाओ में, जो नहीं था मैं वह है चिताओ में जो हूँ मैं वह है सब जगह, जो नहीं मैं…
जो हूँ मैं वह है स्दीवि यहीं, जो नहीं मैं वह था कभी नहीं जो हूँ मैं बचा वह तो है असल, जो नहीं बचा…
पल – पल बदलती–रचती–घटती इस दुनिया मॆं , मन कैसे कहे , तुझे पा ही लिया , है यूई जानता अब , था जो कल…
पल – पल घटता बहुत कुछ यहां , जो रिश्ते कल बुने , देखा उनका अंत आज यहीं , ख्वाब नये जो देख रहा ,…
पल – पल रचता यहां कुछ नया , जो था कल तक सच , जिंदा वोह आज नहीं , है लगता जो आज सच ,…
पल – पल बदलता सब कुछ यहां , जो कल था तूं , है वोह आज नहीं , है जो आज तूं , होगा वोह…
कोई कोना जिस्म का उड़ के बैठा किसी कोने में अब सफर साँसों का गुजरता है कभी जिस्म में कभी, किसी कोने में राजेश’अरमान’
कुछ परछाइयाँ सी चलती है मेरे पीछे , वक़्त भी बहरूपिया होता है गुमाँ न था राजेश’अरमान’
कभी मन करता है फिर से दुनिया को औरों की नज़र से देखूँ शायद मेरी नज़र में कोई भ्रान्ति दोष हो एक बार देखा जब…
गहरे राज़ छुपे है अपनी ही साँसों में लो तो ठंडी छोड़ों तो गर्म -गर्म राजेश’अरमान’
आँखें तो बस देखती रही ज़िंदगी के आवागमन को राजेश’अरमान’
कोई पुल ऐसा भी होता जिस पर चलते सिर्फ तुम राजेश’अरमान’
मर गई आत्मा ,शरीर कहने को ज़िंदा है पंछी मन का उड़ गया ,आँखों में परिंदा है राजेश’अरमान’
यह रुके हुए आँसुओं का हिज़ाब है या फिर आने वाला कोई सैलाब है …
न सूत न कपास फिर भी बंधी आस जुलाहे ले के बैठे लट्ठ कभी तो आएगी कपास राजेश’अरमान
चारों और अधर्म के जंगल भक्ति हो गई दावानल राजेश’अरमान’
दो इशको का मिलन है यह हमारा इशक है खुदा की तसवीर यह इशक यह तेरा इशक और यह मेरा इशक
है यह तेरा भी इशक और है तो मेरा भी इशक ना कम तेरा इशक ना कम मेरा इशक दो एह्सासो का मिलन…
मेरा इशक तेरे मन में सिमटा हुआ परिंदा तेरा इशक मेरे मन को अपने संग ऊङाता हुआ परिंदा मेरा इशक तेरे आँचल में सिमटी…
मेरा इशक झील का रुका हुआ पानी तेरा इशक नदी की बहती हुई धारा मेरा इशक वोह आग, जो आग को पानी कर दे…
अच्छा हुआ आँखों से बह गए आँसूं जो जिगर में जम जाते तो हादसा होता राजेश’अरमान’
अपनी हर सांस तो बस तेरी चाह में गुजरी तेरी सारी उम्र जमाने की परवाह में गुजरी सोचा था कहोगे उदास तुम मेरी खातिर न…
एक कोई राह अपना लो , वो राह यूई को दिखला दो या तो मुझे अपना बना लो, नहीं तो इस रिश्ते को दफना दो …
अपनीयत को गर है जन्मना तो , शिकवे – शिकायतें सब दफ्ना दो दिल से दिल की धड़कन मिला दो , अपनी रूह में मेरी…
दर्द देना गर फितरत है तेरी , अपनीयत का तुम गला दबा दो चाहें जितने भी फिर ज़ख्म दिला दो, अपनीयत के दर्द से मुझे…
दिल और रूह से जुड़ा , हमारा यह रिश्ता दो नावो की सवारी , सह नहीं सकता
मेरे लफ्ज़ ग़ुलाम बन गए तेरे लफ़्ज़ों की सरफ़रोशी से राजेश’अरमान’
दर्द अपनों को , भूले से भी दिया नहीं करते गर देना ही है दर्द तो , अपना उन्हें कहा नहीं करते …… यूई
कल रात फिर आँखों में गिरफ्तार हुए कई ख्वाब नशे में आवारागर्दी करते राजेश’अरमान ‘
देख लेता मैं भी तेरे जलवे गर तेरे जलवे पराये न होते राजेश’अरमान’
की परवरिश जिन ख़्वाबों की औलाद की तरह दफ़न कर मुझे फ़र्ज़ निभाया औलाद की तरह राजेश’अरमान
गम की फसलें सींचता आँखों की बारिश से हर ख्वाब ने दम तोडा अपनी ही गुजारिश से राजेश’अरमान’
किसी ने सूद से भरी पुरवाइयां चुनी किसी ने दर्द भरी शहनाइयां चुनी हमें कुछ चुनने का हुनर न आता था सो गम से लिपटी…
जरूरत के हिसाब से , खुद से पहचान हुई कई हिस्से अब भी अजनबी है मेरे अंदर राजेश’अरमान’
उसकी नज़रों की तलाशी में मेरे किरदार बदले से मिले मैं ढूंढ़ता रहा उसकी आँखों में चंद कतरे पर जमे से मिलें राजेश’अरमान’
अब मंज़िल मेरे साथ-साथ चलती है जब से बनाया मंज़िल अपने साये को राजेश’अरमान’
चंद क़दमों में थक के बैठ गया राही मंज़िल मुसीबत नहीं जो बैठे- बैठे गले पड़े राजेश’अरमान’
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