कभी लहू तो कभी उनका कफ़न बन जाऊ
स्वतंत्रता दिवस काव्य पाठ प्रतियोगिता:-
कभी लहू तो कभी उनका कफ़न बन जाऊ
स्वतंत्र दीप से जगमगाता हुआ चमन बन जाऊ
ए आजादी तू घटा बनके बरसना
और में तेरा भीगता हुआ गगन बन जाऊ
क्यों याद दिला रहा हूँ, जो है बात पुरानी
इक अल्फाज नहीं, ये है पूरी एक कहानी
इस मिट्टी में खूं से लिपटी न जाने कई जवानी
वो पटेल आजाद लाल और सुभास तो याद नहीं तुम्हे
लेकिन ये लहराता तिरंगा है इनकी निशानी
जाओ तुम भी क्या याद करोगे
वो अमर वीर क़ुरबानी
आजादी के नाम पर
धर्म अधर्म का खेल खेलते
जिस्मो का रोज नया बाजार खोलते
वो सत्य नेता की तिजोरी में
और अहिंशा चोरो की चोरी में
फिर क्यू खुदको भारतीय बोलते
वो वीर तीर थे
कभी आग तो कभी प्यार का नीर थे
परछाई भी जिनकी लड़ा करती थी
वही तो भारत बनाने वाले पीर थे
इन्ही से हुआ ये एक देश महान
जिनको कहते हम हिंदुस्तान
लेकिन
भ्रष्ट कपट और अपराध पर करते लोग आज गुमान
आप ही बताओ कैसे कहुँ मैं
मेरा भारत महान
मेरा भारत महान
सुभाष, अहिंसा
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति
कविता का पाठ नाटकीय ढंग में, लाजवाब! बहुत ही उम्दा
हमारे महान महापुरुषों एवं देशभक्तों के बलिदान से जो आजादी हमें मिली है सच में उसका अपमान किया जा रहा है,राजनीति से जुड़े कुछेक लोग उसका भरपूर फायदा अपने घटिया मंसूबे पूरे करने में उठा रहे हैं।
बहुत सुंदर भाव
Bahut Bahut Dhyanyawad sir …🙏🙏😊 meri chhoti lekhni smjne ke liye aapka aabhar 😊😊😊🙏🙏
मेरी तरफ से प्रतियोगिता के विजेता आप
हो। 👏👏👏बहुत बार सुन चुका हुं आपकी कविता को बहुत अच्छी लगी।
आपने उपलब्धियों के साथ हमारे देश की कुछ कमियों को भी जिस काव्यात्मक ढंग से उजागर किया है उसके लिए आप बधाई के पात्र हैं ।
Dhanyawad sir..🙏🙏
बहुत सुंदर कविता
Shukariya…🙏🙏😊😊
Sarvottam
Bahut bahut Dhyanyawad guru ji 🙏🙏😊😊
बहुत खूब, बोहरा जी, जय हिंद
Dhanyawad sir🙏😊