saliqe se hawaon mein jo khushbu ghol sakte hain

June 9, 2022 in शेर-ओ-शायरी

सलीक़े से हवाओं में जो ख़ुशबू घोल सकते हैं
अभी कुछ लोग बाक़ी हैं जो उर्दू बोल सकते हैं

~ मुहम्मद आसिफ अली

Khwaab Ko saath Milkar Sajaane Lage

May 27, 2022 in ग़ज़ल

ख़्वाब को साथ मिलकर सजाने लगे
घर कहीं इस तरह हम बसाने लगे
कर दिया है ख़फ़ा इस तरह से हमें
मान हम थे गए फिर मनाने लगे

अपनी क़िस्मत को फिर बदल कर देखते हैं

May 17, 2022 in ग़ज़ल

अपनी क़िस्मत को फिर बदल कर देखते हैं
आओ मुहब्बत को एक बार संभल कर देखते हैं

चाँद तारे फूल शबनम सब रखते हैं एक तरफ
महबूब-ए-नज़र पे इस बार मर कर देखते हैं

जिस्म की भूख तो रोज कई घर उजाड़ देती है
हम रूह-ओ-रवाँ को अपनी जान कर के देखते हैं

छोड़ देते हैं कुछ दिन ये फ़ज़ा का मुक़ाम
चंद रोज़ इस घर से निकल कर देखते हैं

लौह-ए-फ़ना से जाना तो फ़ितरत है सभी की
यार-ए-शातिर पे एतिबार फिर कर कर देखते हैं

कौन सवार हैं कश्ती में कौन जाता है साहिल पर
सात-समुंदर से ‘आसिफ’ गुफ़्तगू कर कर देखते हैं

~ मुहम्मद आसिफ अली (भारतीय कवि)

New Report

Close