वो जो मुह फेर कर गुजर जाए

November 5, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो जो मुह फेर कर गुजर जाए
हश्र का भी नशा उतर जाए

अब तो ले ले जिन्दगी यारब
क्यों ये तोहमत भी अपने सर जाए

आज उठी इस तरह निगाहें करम
जैसे शबनम से फूल भर जाए

अजनबी रात अजनबी दुनिया
तेरा मजरूह अब किधर जाये

एक और इंतजार

November 3, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक और इंतजार

सर्दियों के दिन कितने मासूम से दिखते हैं
छोटे बच्चे की तरह ऊनी कपडे में लिपटे हुए
तुम्हारे आने के दिन थे वो
मैं देर तक पटरियों पर बैठे
इंतज़ार सेंका करती
रेल को सब रास्ते याद रहते
एक मेरे पते के सिवा
सूरज डूबता पर तुम्हारा इंतज़ार नहीं

मैं बैठी रहती
चाँद को गोद में लिए हुए
तुम चुपके से नींद में आते
फिर धुंध पर पाँव रख कर लौट जाते
एक और इंतजार मेरे नाम लिखकर

दुश्मनों की दोस्ती है अब अहले वतन के साथ

November 3, 2015 in हिन्दी-उर्दू कविता

दुश्मनों की दोस्ती है अब अहले वतन के साथ
है अब खिजाँ चमन मे नये पैराहन के साथ

सर पर हवाए जुल्म चले सौ जतन के साथ
अपनी कुलाह कज है उसी बांकपन के साथ

किसने कहा कि टूट गया खंज़रे फिरंग
सीने पे जख्मे नौ भी है दागे कुहन के साथ

झोंके जो लग रहे हैं नसीमे बहार के
जुम्बिश में है कफस भी असीरे चमन के साथ

मजरूह काफले कि मेरे दास्ताँ ये है
रहबर ने मिल के लूट लिया राहजन के साथ

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