स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त

August 15, 2020 in गीत

*15 अगस्त का महापर्व*

कभी सोने की चिड़िया सा,
ये हिंदुस्तान हमारा था !
जमी पर जैसे जन्नत था,
जगत जग-मग सितारा था !
लुटेरों ने इसे न जाने,
कितनी बार है लूटा !
जुड़ा है टूट कर के ये,
जुड़ा और जुड़ के फिर टूटा !

कहानी न महज समझो,
नही कोई है ये किस्सा !
नही इतिहास ये पूरा,
फकत छोटा सा है हिस्सा !
अभी भूले नही थे हम,
पिछले/मुगली प्रशाशन को !
नज़र अंदाज़ कर सकते नही,
गोरे कुशाशन को !

तृषित था तंत्र भारत का,
ग्रषित ग्रामीण और शहरी !
समय का चक्र ये देखो,
की बिल्ली दूध की प्रहरी !
अतिथि देवो भवः की ये धरा,
फिर भी रही ठहरी !
हमारे पूर्वजों के शान पे,
थी चोट अब गहरी !

उठा भूचाल भूतल पर,
उगे लंगड़ी शमा के पर !
अब फूटी क्रोध की ज्वाला,
औ टूटे सब्र के सागर !
जने तब लाल भारत में,
अपनी जननी की कोखो से !
तपा अब जर्रा-जर्रा था,
दिखीं लपटें झरोखों से !

इरादे जीतने का लेके,
बच्चा बच्चा था आया !
चुनी अब राह सबने वो,
जिसे था जो भी है भाया !
उऋण हो गोद भारत माँ की,
अब बहशी फिरंगी से !
हराई शूरमों ने तोपे,
बस तलवार नंगी से !
कोई हंस कर चढ़ा फांसी,
कोई था वीरगति पाया !
उन्ही वीरों-शहीदों ने,
देश आज़ाद करवाया !

हटी बरसों की जिल्लत,
जब तिरंगा नभ पे लहराया !
सभी ने साथ मिलकर था,
ये बन्दे मातरम गाया !
हमारे उन शहीदों ने,
हमें ये दिन है दिखलाया !
वही ये ऐतिहासिक दिन
*स्वतंत्रता दिवस/15 अगस्त* कहलाया !

हुआ हर *सै* मृदा से अंकुरित,
इस राष्ट्र मधुबन में !
हुए हर्षित थे *जन, गण, मन*
प्रफुल्लित हो उठे मन में !

हमारे पूर्वजों/ *शहीदों*
ने जब,
हमें ये दिन था दिखलाया !
वही इतिहास ने हमको,
*स्वतंत्रता दिवस* बतलाया !!

🙏🙏🙏
धीरेन्द्र प्रताप सिंह “धीर”
*भूत पूर्व सैनिक*
रायबरेली उत्तर प्रदेश

स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त

August 15, 2020 in गीत

*15 अगस्त का महापर्व*

कभी सोने की चिड़िया सा,
ये हिंदुस्तान हमारा था !
जमी पर जैसे जन्नत था,
जगत जग-मग सितारा था !
लुटेरों ने इसे न जाने,
कितनी बार है लूटा !
जुड़ा है टूट कर के ये,
जुड़ा और जुड़ के फिर टूटा !

कहानी न महज समझो,
नही कोई है ये किस्सा !
नही इतिहास ये पूरा,
फकत छोटा सा है हिस्सा !
अभी भूले नही थे हम,
पिछले/मुगली प्रशाशन को !
नज़र अंदाज़ कर सकते नही,
गोरे कुशाशन को !

तृषित था तंत्र भारत का,
ग्रषित ग्रामीण और शहरी !
समय का चक्र ये देखो,
की बिल्ली दूध की प्रहरी !
अतिथि देवो भवः की ये धरा,
फिर भी रही ठहरी !
हमारे पूर्वजों के शान पे,
थी चोट अब गहरी !

उठा भूचाल भूतल पर,
उगे लंगड़ी शमा के पर !
अब फूटी क्रोध की ज्वाला,
औ टूटे सब्र के सागर !
जने तब लाल भारत में,
अपनी जननी की कोखो से !
तपा अब जर्रा-जर्रा था,
दिखीं लपटें झरोखों से !

इरादे जीतने का लेके,
बच्चा बच्चा था आया !
चुनी अब राह सबने वो,
जिसे था जो भी है भाया !
उऋण हो गोद भारत माँ की,
अब बहशी फिरंगी से !
हराई शूरमों ने तोपे,
बस तलवार नंगी से !
कोई हंस कर चढ़ा फांसी,
कोई था वीरगति पाया !
उन्ही वीरों-शहीदों ने,
देश आज़ाद करवाया !

हटी बरसों की जिल्लत,
जब तिरंगा नभ पे लहराया !
सभी ने साथ मिलकर था,
ये बन्दे मातरम गाया !
हमारे उन शहीदों ने,
हमें ये दिन है दिखलाया !
वही ये ऐतिहासिक दिन
*स्वतंत्रता दिवस/15 अगस्त* कहलाया !

हुआ हर *सै* मृदा से अंकुरित,
इस राष्ट्र मधुबन में !
हुए हर्षित थे *जन, गण, मन*
प्रफुल्लित हो उठे मन में !

हमारे पूर्वजों/ *शहीदों*
ने जब,
हमें ये दिन था दिखलाया !
वही इतिहास ने हमको,
*स्वतंत्रता दिवस* बतलाया !!

🙏🙏🙏
धीरेन्द्र प्रताप सिंह “धीर”
*भूत पूर्व सैनिक*
रायबरेली उत्तर प्रदेश

कृष्णलीला

August 8, 2020 in गीत

*कृष्ण लीला*

तू दधि चोर तो; तोही न छोडूं,
पकड़ बांह तोरे; कान मरोड़ूँ !
लल्ला मेरो मोही हिय ते प्यारा
तोसे कुढ़त गोकुल ब्रिज सारा

*खा सौं अब तू मोरी,*
*न करिहउँ अब मै चोरी* !!

जग के पालक: जननी के बालक,
प्रहसन करते; जग संचालक !
जड़ चेतन बंशी सुन हिलते!!
ग्वालन संग जमुना तट मिलते,

*खा सौं अब तू मोरी,*
*न करिहउँ अब मै चोरी* !!

गाय चरैया, पर्वत को उठइया,
बिषधर को, जमुना में मरैया !
पुरबाशिन को लाज न आवत,
मोरे लल्ला को, चोरी लगावत!!

*खा सौं अब तू मोरी,*
*न करिहउँ अब मै चोरी* !!

धीरेन्द्र प्रताप सिंह “धीर”
भूत पूर्व सैनिक
रायबरेली (उत्तर प्रदेश)

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