बुरा वक्त हैं

October 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

अक्सर इल्ज़ामात पर इल्ज़ाम लगाते हैं
हम बोलते नहीं, बस चुप रह जाते हैं…
बता दूं.. बुरे हम नहीं, बुरा हमारा वक़्त है

वो कहता है बेवफ़ाई की है
कहता है बेवफ़ाई की है
जिस दिन सीधा वक़्त आएगा…
खुलकर बताएंगे कि बेवफ़ा हम नहीं,
बेवफ़ा हमारा वक़्त है

लोग कहते हैं बदले बदले से लगते हों
बदले बदले से लगते हों
बता दें बदले हम नहीं, बदला तो हमारा वक़्त है।

कि बुरे हम नहीं,बुरा हमारा वक़्त हैं।
HEMANKUR❤️

जब अंत समय नज़दीक हो

October 4, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब मेरा अंत समय है नज़दीक हो,
तब आँखों में छवि मेरे बच्चों की हो,
और मेरे हाथों में हाथ तेरा हो…

आयी थी जिस क़दर वद्दू बनकर इस घर में,
उसी जोड़े में विदा करो।
जितनी उमंगों से लाए थे मुझे,
उतने ही दुलार के साथ विदा करो।
जब वो मेरा अंत समय नज़दीक हो…

जिनके प्रेम की पात्र बनी मैं,
उन लोगो से माँगू क्षमा।
कि कोई दूसरा न क़रीब हो,
बस तू ही मेरे साथ हो
मेरी आँखों में छवि मेरे बच्चों की हो
हाथों में हाथ दे रहा हो।

उन मासूमों की अठखेलियों को,
बड़ों के दिए हुए दुलार को,
समेट ले जाऊँ वहीं।
तेरे साथ बिताया वह हर लम्हा
उस अंतिम क्षण में फिर से जी जाऊँ मैं..

मेरा अंत समय जब नज़दीक हो।
HEMANKUR❤️

शक्सीयत

September 16, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अपने चहरे को इस तरह अपनी शक्सीयत के अनुरूप बनाइए…

कि अपके पूरे विवरण के लिए…
केवल चहरा ही काफी हों।।
HEMANKUR❤️

सत्य

September 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दुनिया के अनजाने भीड़ भाड़ में हम ऐसे अकेले आ खड़े हैं,
कोई समझे न कोई अपना अंक ये कैसी मुश्किल से जूझ रहे हैं।

दुनिया और अपनी इस जंग में यारों सत्यम की लड़ाई है,
देखा है युगों को छान कर हमें यही सब हिंसा पाई है।

सत्यम में ये सब तथा आया,
त्रेता में रावण (झूठ) को (राम) सत्य ने था मारा,
द्वापर में मार्ग प्रदर्शित करने को, कृष्णा ने सत्य की लीला रचाई थी

इस कलियुग आए बापू , जो सभी को समझें सभी को जाने
लाठी की आवाज़ के दम पर, सत्य को जीताए थे।
श्वेत रंग का चोगा ओढ़े, शांति का पाठ पढ़ाए थें।

तुम सोचो कि क्या है ख़ास,तो सुनो सबबातोंकी एक ही बात..
‘ इस दुनिया में सब कुछ नश्वर, एकसत्य ही अनश्वर है।
सत्य ही मानव धर्म है, और सत्य ही हमारा ईश्वर है।’
HEMANKUR❤️

हक़

August 29, 2020 in शेर-ओ-शायरी

इतने मशरूफ हो गए हम
औरों में ए- ज़िंदगी…
कि भूल ही गए…
तुझ पर हमारा भी तो
कोई हक था। 😞😒💔
HEMANKUR❤️

याद किया करते हैं

August 20, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ इस तरह तेरा तूझे याद किया करते हैं,
सब हैं करीब, पर तेरी ही कमी महसूस किया करते हैं।

ज़िक्र चलता हैं किसी ओर का,
बातों ही बातों में हम तेरा किस्सा छेड़ दिया करते हैं।

ख़लती हैं तेरी कमी,
जब भी कभी हम तनहा बैठा करते हैं।

कि कुछ इस तरह हम तूझे याद किया करते हैं।

HEMANKUR ❤️

तन्हाई हैं…

July 17, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

दुनिया देखूं या खुद को देखूं , ये कैसी घड़ी आई हैं
सब कुछ होकर भी हम अकेले, यह कैसी तन्हाई हैं

ख़ुद की इच्छा मार कर मैंने, जो दुनिया संग दोस्ती बड़ाई हैं
आज जो खोजू आइने में ख़ुद को, अब मिलती नहीं वो परछाई हैं

दुनिया को कुछ क्षण छोड़ जो, तुझ संग आस लगाई थी
तू भी हुआ वो बेररवाह, इस कारण पैंरो में बेड़िया पाइ थी।

ख़ुदा करें तुझे मिले इतनी तरक्की, जिसकी ख्वाब में न सोची हों,
जब तू वहाँ से देखे मुझे, मैं तुझे कहीं न मिलूं
खोजे गलियों-चौबारों में, मेरा कतरा भी न दिखाई पड़ें।

इतना हो कर फिर तू बोलें
दुनिया देखी न पर तू न मिली, यह कैसी घड़ी आई हैं।
मेरी तरक्की में शामिल नहीं तू, यह कैसी कामयाबी मैने पाई हैं..
आज सर्वस्व हो कर भी अकेला… यह कैसी-सी तन्हाई हैं।।

HEMANKUR❤️

तुम्हे सुमरने से मिल जाता हैं

July 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिसको पल-पल खोजू बाहर, ढूंढे से न मिलता हैं
ऐसी भी क्या ख़ता हुई जो, हर बार आशा का दीपक बूझता हैं
एक छोटी सी चाह थी मेरी, कि सबके सपने पूरे करूँ
टूटा हुआ सपना मेरा, अब मन-ही-मन खलता हैं
आँस तुम्से ही लगाई हैं, अब न और मन में पलता हैं
जिसको पल-पल खोजू बाहर, ढूंढे से न मिलता हैं।।

हर दर जाकर खोजा सुख को, अब वह कहीं न पाया हैं
दोहुं जगह ही मन का पंछी, अपना घरौंदा बनाता हैं।
एक द्वार तेरा साँवरे वृदावन, जो खुलता हैं
दुजा आसरा तेरा महाकाल जो उजैनी नगरी बसाता हैं

कृष्णा तेरा रूप मनोहर, जो मन को चित ठगे जाता हैं
महाकाल की छवि निराली जो मन को ठहराव बताता हैं

दोनो ही पूरक है मेरे, न कोई कम न कोई ज्यादा हैं
एक राह दिखलाता हैं, दुजा आस बंधाता हैं
पल- पल जिसको बाहर, वह आप दोनो के सुमिरन भर से मिल जाता हैं।।

दुनिया हैं जनाब

July 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रंग-बिरंगे नज़ारे हैं बेहिसाब..
खो न जाना इन नज़ारो में.. ज़रा सम्भलना,
यह दुनिया हैं जनाब।

साथ बैठ के खाते जिस संग,
वहीं दगा कर जाते हैं और बड़ी-बड़ी बातें करते बेहिसाब,
ज़रा सम्भल कर यह दुनिया हैं जनाब।

नकाबी चहरे को देख कर दिल की बातें है बताइ जाती
सच्चे हीरें को फेका जाता.. ‘कह कर यह हैं खराब..
ज़रा सम्भल कर.. यह दुनिया हैं जनाब

गँवारा न हुआ

July 5, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिसे पल-पल दिल से चाहा,
उसका एक कतरा भी हमारा न हुआ।

कसमें- वादे हमसें थे,
पर खुशी का हम संग बटँवारा न हुआ।

झूमते थे, ज़माने के जश्नो में जो,
हम संग एक पल भी बिताना, उन्हे गँवारा न हुआ।

बेरंग

June 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तूझसे मिलकर लगा कि कुछ यूं जिंदगी बिताएगे
कुछ तुम बोलोगे कुछ हम कहते जाएंगे
यूं ही समय,दिन और ऋतु बदल गई
न जाने किसकी नज़र हमारे रिश्ते को लग गई
कि अब न तुझे कुछ कहना है, न मुझे कुछ सुनना है
छोटी सी जिंदगी हमारी बेरंग हो गई
न जाने कब हमारी जिंदगी… तेरी और मेरी हो गई… 😔

आठवें वचन के साथ, गृहस्थ को अपनाता हैं…

June 30, 2020 in Poetry on Picture Contest

छोटी-सी ज़िंदगी में, हर कोई अपने सपनें सजाता हैं।
विवाह तो सभी करते हैं… वह फौजी हैं साहब, जो आठवें वचन के साथ गृहस्थ जीवन अपनाता हैं।

मात-पिता की सेवा को जो, भार्या घर छोड़े जाता हैं..
खुद ‘भारत मॉं’ की रक्षा का बेड़ा उठाए सीमा को तैनात होता हैं।
वह फौजी हैं साहब, जो आठवें वचन के साथ गृहस्थ जीवन अपनाता हैं।

हमें अपना परिवार देखें बिना रहा न जाता हैं..
बच्चे कब बड़े हुए, बहना कब सयानी हुई, उसे यह भान भी न हो पाता हैं।
बहन-भाई की शादी को भी फर्ज़ के खातिर जो छोड़े जाता हैं।
वह फौजी हैं साहब, जो आठवें वचन के साथ गृहस्थ जीवन अपनाता हैं।

परिजनो संग त्यौहार मनाते, खुशिया भी लुटाते हैं…
उसके तो त्यौहार-ऋतु सब बार्डर पर गुजर जाते हैं
मौत के ख्याल भर से हमारी रूह भी कांप जाती हैं
वह अपनी जान हथेली पर लिए, मातृ-भूमि के नाम कर जाते हैं।
वह फौजी हैं साहब, जो आठवें वचन के साथ गृहस्थ जीवन अपनाता हैं।

पैसा-मकान की झूठी शानें दिखलाते हैं…
एक नज़र ‘तिरंगे’ में लिपटे ताबूतो पर डालो, उसके आगे सभी शानें फीकी पड़ जाती हैं
अपने बलिदान के साथ, बाप का सीना..
वह २६” से ४२” का कर जाता हैं
वह फौजी हैं साहब, जो आठवें वचन के साथ गृहस्थ जीवन अपनाता हैं।

HEMANKUR❤️

New Report

Close