एक टेबल

May 25, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक टेबल,
चाय का कप,
और तुम,

एक शाम,
वो बेन्च,
और तुम

एक डोली,
मेरा हाथ,
और तुम

एक घर,
चारो धाम,
और तुम

एक दिल,
मेरे नाम,
और तुम

ये सब सिर्फ रातो में आते है,
ये सब सिर्फ ख्वाबो में आते है।

~हार्दिक भट्ट

कभी ठीक से अपने ही बिछाने पर सो भी तो नही सकते

May 21, 2018 in ग़ज़ल

कभी ठीक से अपने ही बिछाने पर सो भी तो नही सकते,
ए ज़िन्दगी महसूस तो कर सकते है पर छू भी तो नही सकते

काश अब ये भी समज ले कि कोशिश नही की थी हमने,
कुछ भी हो जाये लेकिन मुश्किलो से डर भी तो नही सकते

आदते डाल दी है हमने यू  सबको गले लगाकर मुस्कुराने की,
पता है कि हम उनके है लेकिन वो हमारे हो भी तो नही सकते

चलो एक बार फिर वादा करो मिलने का,फिर से बिछड़ने का,
साथ चलने का वादा करेंगे पर साथ चल भी तो नही सकते

– हार्दिक भट्ट

लगता है

March 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

लगता है हम बिखर चुके है,
अब कोई जोश नही है,रोष नही है,
हालातो का होश नही है
जब सुनते है वो प्यारी बातें
लगता है हम निखर चुके हैं,
लगता है हम बिखर चुके हैं।
याद पुरानी,बात पुरानी,
लगती है वो रात पुरानी,
सब कुछ पुराना है बस एक तुम्ही हो
जो हरबार नए ही लगते हो,
बस इतना ही कहने में कई बार हम जिगर चुके है,
लगता है हम बिखर चुके है।
प्यारा सा पल जो मुस्कुराता नजर आ रहा है,
ठीक वहा जहाँ तुम दिख जाते हो,
जहाँ शाम ढ़लती है,जहाँ दिन होता है,
हर पल,हर घड़ी हम ठहर चुके है,
लगता है हम बिखर चुके है।
~हार्दिक भट्ट

वो गए है छोड़ के हर बार की तरह

March 8, 2018 in ग़ज़ल

वो गए है छोड़ के हर बार की तरह,
हम क्यों हैरान हो बेकार की तरह,
ये कौनसी पहली दफा है मोहब्बत में,
ये सब चलता रहता है सरकार की तरह,
पता है वो वापिस लौट के आएंगे मिलने,
हमने भी ठान लिया है इंतेज़ार की तरह,
वो दिन सुहाने,राते प्यारी,कब तक,
याद भी आते है तो तलवार की तरह,
उम्मीद आज तक नही छोड़ी है हमने,
सजा के रखा है घर, दरबार की तरह.

~हार्दिक भट्ट

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