
JYOTI BHARTI
नहीं लगता
April 6, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
अकेली नही हूँ,पर तन्हा तो हूँ,
यहाँ हूँ तो सही,पर पता नही कहाँ हूँ।
कैसे कहु और किससे कहु ,
मेरे मन की व्यथा ये।
सब कुछ होते हुए भी, क्यों तन्हा हूँ मैं।
भीड़ से दुनिया की घिरी हूँ हरदम,
अपने और अपना कहने वाले बहुत है।
पर क्यों फिर भी कोई अपना नहीं लगता।
कहने को तो चाहते है बहुत,
पर कोई सच्चा चाहने वाला नही दिखता।
कहने को तो बहुत मुसाफिर है राहो में मेरी,
पर मुझे कोई हमसफर क्यों नही लगता।।
वो कहता था,
March 24, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
वो कहता था ,की सोनिये तेरी आंखां तो काजल जच्चदा सी, फेर मैंने वी पूछ लिया मुझे क्यों रुला कर तू चला गया।
मैंने पूछा क्यों चूम जाते हो होंठो को यूँ तुम,
वो मरजाना कह पड़ा तेरे होंठो पर लाली जो नही जचदि।
मुझे कहता था, तेरी पायल सांस निकाल जाती हैं,तुझसे मिलने पर मजबूर कर जाती है,
आज थक गयी में पायल छनका कर,पर आया नहीं तू सुबह से शाम हो गयी।
मेरी चूड़ी की खनखन तुझे सताती थी,तुझे हर पल बेचैन कर जाती थी,तूने ही कहा था ना
फिर आज क्यों मेरी कलाई सूनी कर गया,
तुझे पता था ना,मैं तेरे बिना डर जाती हूं,एक पल भी तेरे बिना ना रह पाती हूँ।
क्यों उम्र भर की जुदाई दे गया,
मुझे इतनी भीड़ में अकेला छोड़ गया,
कम से कम ये बता जाता की इंतज़ार करू या अपनी किस्मत पर ऐतबार,
उसी मोड़ पर रहूँ मैं,या तेरे याद में समां जऊँ
बता अब अकेले कहाँ जाओ मैं????
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“शहीदों” की “शहीदी”
March 18, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
हुए बहुत लोग शहीद मेरे देश को बचाने को,
पर उन “शहीदों” की “शहीदी” आज खुद शहीद सी लगती है।
देश में हो रहे हंगामो में खुद कही गुम सी लगती हैं।
जिस दिन औरत-आदमी का सामान अधिकार हो जायेगा,
यकीन मानो उस दिन “शाहिदो” की “शाहीदी” को सलाम हो जायेगा।।।।
जिस दिन निर्भया जैसी लडक़ी सरेआम बेआबरू होने से बच जायेगी,
उसी दिन मेरे देश की शाहिदो की शाहीदी अमर हो जायेगी।
जब शाहिदो ने शाहीदी के वक़्त धर्म,जात-पात न देखा,
तो हम क्यों इन ढकोस्लो में पड़ते है।
आ बसंती चोले को काले रंग में रंगते है।।
शहीद होने का मतलब बस प्राण देना नहीं होता,
अपने समाज देश को हर बुराई से आज़ाद करना होता है,
तभी उनकी कुर्बानी “शहीदी” कहलायेगी,
उनके नाम और बलिदान को शीतिज पर लहरायेगी।।
-द्वारा
ज्योति

हम तो…..
March 9, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता
मैं आज भी गमो का क़र्ज़ चुकाते हुए,
अपनी सारी खुशियां दाँव पर लगाये बैठी हूँ।
कौन कहता है सिर्फ बेवफा होती है औरत,
मैं अपनी वफ़ा साबित करने में अपना दामन ,सबकी बातों से छलनी करवाये बैठी हूँ।
आज भी इस ज़िन्दगी की दौड़ में खुद पर बाज़ी लगाये बैठी हूँ।
कौन कहता है वो बदनाम गालियां बस बदनामी दे जाती है,
मैंने तज़ुर्बे के साथ वहाँ से शौहरत को पाते देखा है।
मैं उनके गमो को भुलाने के लिए घर से क्या निकली उस दिन,
आज तक अपनी ख़ुशियों का पता गवाएं बैठी हूँ।
आज भी ज़िन्दगी में हम उनके ठुकराये हुए बैठी हूँ।
कौन कहता है ज़माना ज़ुल्मी है,
हम ज़माने को बदलने को उसके आज भी हर सितम भुलाये बैठी हूँ।
कौन कहता है हम पत्थर दिल है ,
हम आरसे और ज़माने से मोहब्बत में दिल लगाये बैठी हूँ,
कौन कहता है दिल नही टूट्ता हमारा
साहब इन गालियों में खुद को आज़माये बैठी हूँ।
आज भी हम बस खुद को खो कर
उनको तलाश करने में मग्शूल हुए बैठी हूँ।
कौन कहता है मग्शूल है हम खुद में,
मैं तो आपमें समाये बैठी हूँ।
आओ रंग लो लाल
March 6, 2017 in Poetry on Picture Contest
आओ रंग ले एक दूसरे को,
बस तन को नहीं मन को भी रंग ले….
हर भेदभाव जात-पात को रंग ले
धर्म के नाम को रंग ले।
मिला ले सबको एक रंग में
वो रंग जो है मेरे तेरे प्यार का
हर सरहद से पार का
धरती से ले कर उस आकाश का
रंग दो सबको उस रंग में।।
सिर्फ अपना नही उस नन्ही परी का मुँह मीठा कराओ
उस गरीब के घर तक भी रंग को पहुचाओ
उस माँ के खाली दामन में भी ख़ुशी थोड़ी तुम डाल आओ।।
सिर्फ अपनों को नहीं सबको रंग दो
हर सपने को रंग दो
हर पल को रंग दो
हर रंज और नफरत को रंग दो
सब कुछ लाल रंग दो मोह्ब्बत का लाल
तेरे और मेरे सबके हर मज़हब धर्म का रंग लाल
अमीरी और गरीबी का लाल
ऊंच नीच का लाल
फिर हर तरफ होगा लाल बस मोहब्बत का लाल
और हर तरफ होगी होली
बस खुशियों की टोली।।।।
धन्यावाद
द्वारा
ज्योति भारती