by Kavita

वो जो गैर निकले

July 18, 2022 in Other

दर्द में मेरी जीभ मेरी नहीं होती,‌।फिर तुम तो कहीं बाहर से आये मेरी जिन्दगी में,।न सोचना तुम्हें सोचती हूँ ,मैं,तुम्हें माथे पर रखा ,खुद को बहुत कोशती हूँ ,मैं,,।।कविता पेटशाली 💔💔💔💔💔💔💔

by Kavita

विभव में भोर हो जाए,,।।

July 4, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं ,,जीयूं इस तरह , कि विभव में भोर हो जाए,
मैं,, जीयूं इस तरह ,की कविता हर ओर हो जाए,
देश ,लिखने वाले द्वेश नहीं लिखा करते,
मिट्टी में भी सुगन्ध लिया करते हैं,
तब कहीं पूरी होती है ,एक सौंगन्ध ,।
घिरे जब आसमां घन ~घोर,
तब कहीं सुर्य फैलाए ,अपना प्रकाश तेज,
तब ,कहीं, संतुष्ट वातावरण में ,कविता हर ओर हो जाए,।
मैं जीयूं इस तरह, कि विभव में भोर हो जाए,।।
कविता पेटशाली ।।❤️💛💛💚💚💕💜🖋️📒💞💝💓🌸

by Kavita

अहसास की सुगन्ध है,,।।

July 1, 2022 in हिन्दी-उर्दू कविता

अरसे बाद,खुद को पहचान पाई हूं,
ये मेरे अहसास की सुगन्ध है,।
समय का इक पहलू ,मेरा बड़ा भयभीत रहा ,
फिर भी मुसाफिर इक जिन्दाबाद रहा,।
ज़िन्दगी का वह मोड़ क्या रहा होगा,
जहां सात साल संग में एक बेजोड़ रहा,
वह फेंक गया उल्टे दस्तावेज की तरह ,
यकीं नहीं मानोगे नामुराद एक इतना फरेब रहा,।
कागज भी सिसक गया उन भयानक तस्वीरों से ,
जहां कविता में इतना द्वेश रहा,।
चहरे ~चहरे को देख चिलाती ,
खुद को आईने में देख नहीं जान पाती ,।
बस प्राण ही इक शब्द मुझमें शेष रहा ,।।
इस्तेहार आज भी मेरे वहीं के वहीं है,।
मानो यह अहसास जानते हैं,मुझे किसी पुष्प की भांति,।
मैं ,सोचती हूं,इन्हें चाहिए फिर से इक खिलखिलाती कविता,।
जिसके अनुकरण में होती है ,इक नई भोर,
जिसकी ध्वनि से आती हो ,बच्चे के होंठों पर मुस्कान,।
यह मेरे अहसास ही है,जिन्होंने वक़्त रहते
नहीं मिटने दिया एक किरदार,।।
अरसे बाद ,खुद को पहचान पाई हूं,।
ये मेरे अहसास की सुगन्ध है,,।।
कविता पेटशाली

♥️♥️💜💚💚💚💚💚💚💓📒🖋️💝💕

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